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आचा०
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उत्तर - प्रज्ञापना अध्ययन ते उपांग छे अने आर्ष वचन छे. तेमां बधा भेदो लेवा योग्य छे। अने स्थां बधा भेदो बताववाथी स्त्री विगेरेने बधारे लाभ धाय, अने नियुक्तिओ तो सूत्रना अर्थ साथै एकता करे छे, तेथी लीपा नथी, तेथी अदोष छे.
उपर कहेला बादर अपकायना संक्षेपथी ये भेद छे. पर्याप्ता अने अपर्याप्ता तेमां अपर्याप्ता ते वर्ण विगेरेने न पामेला अने पर्याप्ता ते वर्ण, गंध, रस, अने स्पर्शना आदेशोवडे हजारो भेवाळा छे। अने तेथी संख्येय योनी प्रमुख लाखो भेदे थाय छे ते जाणवुं. आ बधानी संतृत योनि जाणवी अने ते योनि सचित्त, अचित्त, मिश्र एम त्रण भेदे छे. तथा शीत उष्ण, अने मिश्र एम ऋण भेदे छे. प प्रमाणे गणतां अपकायनी सात लाख योनी थाय छे. हवे प्ररूपणा पछी परिमाण द्वार कहे छे. जे बायरपज्जत्ता पयरस्स असंखभाग मित्ताते। सेसा तिन्निवि रासो वीसुं लोगा असंखिजा ॥ १०९ ॥
जे बादर अपकाय पर्याप्ता छे ते संवर्तित लोक मतरना असंख्यातमां भागमां जे प्रदेश राशी छे तेना बरोबर छे. अने बाकीना जे ब्रह्या ते प्रथक असंख्यात लोकाकाश प्रदेश राशी प्रमाण जाणवा पण तेमां आटलं विशेष छे के बादर पृथिवीकाय पर्यासाथी बादर अपकाय पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे, अने बादर पृथिवीकाय अपर्याप्ताथी बादर अपका अपर्याप्ता असंख्यात गुणा छे, तेमज सूक्ष्म पृथिवीकाय अपर्याप्ताथी सूक्ष्म अपकाय अपर्याप्ता विशेष अधिक छे अने सूक्ष्म पृथिवीकाय पर्याप्ताथी सूक्ष्म अपकाय पर्याप्ता विशेष अधिक छे. हवे परिमाण द्वार कछु पछी च शब्दधी चुचवेलुं लक्षणद्वार कहे छे. जह हत्थिस्स सरीरं कललावत्थस्स अहुणोववन्नस्स होइ उदगंडगस्स य एसुवमा सङ्घजीवाणं ॥ ११० ॥
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सूत्रम
॥११५॥