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आचा०
॥१४९॥
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| पृथिवी पाणी, वायु, अने वनस्पति विगेरेनी अनुक्रमे (उत्कृष्ट स्थिति) बावीश हजार, सात हजार, ऋण हजार, अने दश हजार वर्ष प्रमाण होवाथी ते दीर्घ है, एथी दीर्घलोक ते पृथिवी विगेरे तेमनुं आ अग्निकाय शस्त्र छे एम जाण
तेना क्षेत्रने जाणनारा निपुण अफ्रिकायने वर्ण बीगेरेथी जाणे छे, तथा अग्निनो सर्व प्राणीओने खेद पमावान एटले बाळवानो व्यापार होवाथी; पाक वीगेरे अनेक शक्तिकलापथीच वेला मोटा मणिनी माफक जाज्वल्यमान होय; ते अग्निना व्यपदेशने | पामे छे, ते अनि (जीवांने दुःख आपनार) होवाथी साधुओए तेनो आरंभ न करवो; ए एटले बीजा प्राणीओना खेदने जाणनार | ते खेदझ-मुनि छे, एथीज दीर्घलोक शस्त्र (अग्नि) ना खेदने जाणनार तेज सत्तर प्रकारना संयमनी खेदज्ञ छे. अर्थात् मुनिनो संयम अशस्त्र छे, ते संयम निगथी कोइपण जीवने न मारे; तेथी अशख छे, तेथी संयम जे सर्व सत्त्वने अभय देनार छे, ते आदरवा वडे अग्नि-जीव संबंधी आरंभ तजवो सहेल छे, अने पृथिवीकाय विगेरेनो समारंभ पण त्यागवो; एम वर्तनार साधु-संयममां, निपुण मतिवाळो छे, अने निपुणमतिपणाथ परमार्थने जाणनार अग्नि समारंभथी पाछो हठीने संयम अनुष्ठानमा भर्ते छे.
हवे कलां अने आतां लक्षणो वडे अविना भावित्व (साथै रहेनार) बताववा माटे विपर्यय (उलटापणा) वडे सूत्रांना अवयवनो विचार करे छे, जे 'असत्यस्सेत्यादि' जे अशस्त्रवाळा संगमां निपुण छे, ते format दीर्घलोक शत्र (अग्नि)ना क्षेत्रने जाणनारा, अथवा खेदने जागनार छे. संयमपूर्वक अग्नि विषय खेदने जाणवापणुं होवाथी तथा अग्निविषय खेदनुं जाणवाप जेमां छे; तेज संयमनुं अनुष्ठान छे. आ शिवाय बीजी रीते संयमनो असंभवज छे. तेथी आ गयुं, आव्यु फळ प्रकट करेलुं छे.
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सूत्रम ॥१४९॥