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सूत्रम्
॥१४४॥
दडानो अग्नि परस्पर एकबीजाथी दुःख पामे छे. कोइ परकाय शस्त्र छे, जेम पाणी अग्निकांपना जीवाने हक छे अने उभय सत्र आचामा | ते तुष, करीप, (छाणां) विगेरेथी मळेलो अग्नि बीजा अग्निने शस्त्ररूप छे. (अहिं उभयथी एम समजg के थोडा वळतां माटीवाळा
छाणां तथा वळतां भातना छोडां विगेरे अग्नि सहित होय छे तेथी अग्नि अने पृथिवी एम घेउ मळी उभय थयां.) मूळमां 'तु'। ॥१४॥ शब्द छे ते भाव शस्त्रनी अपेक्षाए विशेष अर्थ छे. अने पूर्वे कहेल समास विभागरूण पृथिवी तथा समाप निगेरे द्रव्य शख छे.
हवे भाव शस्त्र बतावे छे, भावमां शस्त्र ते असंयम छे, ते मन, वचन, तथा कायार्नु खराब ध्यानरूप लक्षण के
पूर्वे कहेलं व्यतिरिक्तना द्वारना अतिदेश द्वारवडे समाप्त करवानी इच्छायो नियुक्तिकार कहे छे.
सेसाई दाराइं ताई जाई हवंति पुढवीए । एवं तेउद्देसे, निज्जुत्ति कित्तिया एसा ॥ १२५ ॥ पूर्व कहेला द्वारो जे पृथिवीकायना उद्देशामां कडेला ते तेजस कायना पण समजवां ते वधो नियुक्तियो अग्निकाय उद्देशामा लागु पडे, एम समजबुं.
हवे मूत्रानुगमर्मा अस्खलितादि गुणयुक्त मूत्र कहे ते आ छे. से बेमि व सयं लोग अब्भाइक्खेजा, णेव अत्ताणं अब्भाइक्खेज्जा, जेलोयं अभाइक्खइसे अत्ताणं अब्भाइक्खड़ जे अत्ताणं अब्भाइक्खइ से लोयं अब्भाइक्खइ । (सू० ३१) एनो सम्बन्ध पूर्वमाफक छे. जेवीरीते में सामान्य आत्म पदार्थ पृथिवी अप्काय जिवविभागर्नु वर्णन कयु, तेवीरीते हुँ अहिं 5
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