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सूत्रम
॥२३
पार मूळ जाति ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शूद्र छे. तेमांथी एक बीजाना संयोगथी त्रण त्रण उत्पन्न थइ. जेमके ब्राह्मणथी द्र आचा०
क्षत्रिय स्त्री साथे जे पुत्र थाय ते पधाम क्षत्रिय अथवा संकर कहेवाय, ए प्रमाणे क्षत्रिय पुरुषथी वैश्य स्त्री साथे जाणवु तथा वैश्य IN पुरुष अने शुद्र स्त्री होय तो ते प्रमाणे दरेकमा प्रधान अने संकर कहेवा ए ममाणे सात वर्णी थाय छे. अनंतरे यया ते आनन्तरा 18 ते योगोमां चरम वर्णनो व्यपदेश थाय छे जेमके ब्राह्मण पुरुषथी क्षत्रियाणी स्त्रीथी क्षत्रिय थाय विगेरे अने ते स्वस्थानमा प्रधान दयाय छे. हवे नव वार्णान्तरनां नामो बतावे छे ॥२१ ।।
अंबटुग्गनिसाया य अजोगवं मागहा य सूया य । खत्ता(य) विदेहाविय चंडाला नवमगा हुंति ॥ २२ ॥
अंबष्ट, उग्र, निशाद, अयोगव, मागध, मूत, क्षत्ता, विदेह, अने चांडाल ए केवी रीते, ते बतावे छे. ॥ २२ ॥ एगं अंतरिए इणमो अंबट्टो चेव होइ उग्गो य । बिइयंतरिअ निसाओ परासरं तंच पुण वेगे ॥ २३ ॥ पडिलोमे सुदाई अजोगवं मागहो य सूओ अ। एगंतरिए खत्ता वेदेहा चेव नायव्वा ॥ २४ ॥ बितियंतरे नियमा चंडालो सोवि होइ गायबो । अणुलोमे पडिलोमे एवं एए भवे भेया ॥ २५ ॥ आ गाथाओनो अर्थ नीचेना लखाण उपरथी जाणवो ते आ ममाणे छे
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