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सूत्रम्
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णुजाणेजा, जस्सेते अगणिकम्म समारंभा परिणाया भवन्ति, से हमुणी परिणाय कम्मे (सू०३८) आचा० त्तिबेमि ॥ इति चतुर्थ उद्देशकः ॥
____ आ अग्निकायना स्वकाय तथा परकाय, एम वे भेदवाळा शस्त्रना आरंभ करनारने रांधवु-रंधावयु विगेरे बंध हेतु छे. एy | तेमने ज्ञान नथी; पण आज अग्निकायना शस्त्रनो आरंभ करवामां दोप लागे छे, एवं जेमने ज्ञान छे, एटले परिक्षा बड़े तेमणे जाण्यु छे. अने जाणीने प्रत्याख्यान परिक्षावडे तेनो त्याग करे छे. तेज मुनी परमार्थथी परिक्षात कर्मा (गीतार्थ) छे, ए, जिनेश्वर पासे में सांभब्यु , अने तेज तने कहुं छु.
। चोथा उद्देशानी टीका समाप्त ।। चौथो उद्देशो करो. हवे पांचमी कहीए छीए; नेनो आ संयंध छे. गया उद्देशामां तेजस्काय कया; अने हवे अधिकळ (स पूर्ण) 8 साधुगुणना स्वीकार माटे क्रमे आवेला वायुकाय बतावताना वखते, वनस्पतिकायना जीवें स्वरुप यतावीए छीए.
प्रश्न-शा माटे आ क्रम उल्लंघो छ?
उत्तर-वायु आंखे देखातो न होनाधी, तनी श्रद्धा धवी मुश्कल छे, तेथी वधश पृथिवी वोगेरे एकेन्द्रिय प्राणी-गणने जापणनारो शिष्य सुखथीज वायुनीवना सारूपने मानशे, अने • अनुक्रम ' तेनेज कहेवो के, जेनावडे जीवादि तत्त्वो मानवामां शि
प्यो उत्साहवाळा थाय, अने वनस्पतिकाय बधा लोकने प्रत्यक्ष छ, तथा प्रकट-जीवनां चिन्हना समूहथी युक्त छे, मेथी तेज वन
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