________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रम
यस्वयमदुःखितं स्यान्न च परदुःखे निमित्त भूतमपि ॥ आचा०
केवलमुपग्रह करं, धर्मकृते तद्भवेद्देयम् ॥ १॥ ॥१३॥
जे पोते दुःखी न याय अने दुःख देवामा निमित्त न थाय भने केवळ उपकार करनारी वस्तु होय तेज धर्मने मादे आपवी जोइए, आ उपरथी ए सिद्ध थयु के पशु विगेरेनुं आपq ते पण अदत्तादानन छे. हवे ए दोपने पोताना सिद्धांतना स्वीकारना द्वारवडे वादी वीजा दोष दुर करवाने माटे कहे छे.
. कप्पइ णे कप्पइ णे पाउ, अदुवा विभूसाए (सू० २७) ___ अशस्त्र उपहत (सचित्त) जल वापरनाराओने आ प्रेरणा करतां तेओ आ प्रमाणे कहे छे. आ अमारी पोतानी बुद्धिथी समालारंभ करता नथी. किंतु अमारा आगममा निर्जीव पणावढे न निषेध करवायी अमने पीवाने तथा वापरवाने कल्पे छे. अने जुदा IPI जुदा प्रयोजनमा उपभोग करवानी अमोने आज्ञा आपी छे. जेप के आजीविक (गोशालना मतवाळा) तथा भस्मस्नापी विगेरे ४ कहे छे के अपने पाणी पीवाने कल्पे छे, पण नहावाने नहि, तथा वौध मतबाळा अने परिवाजक विगेरे कहे छे के स्नान, पान, & अवगाहन विगेरे बधामां अमोने सचित्त जळ कल्पे छे, तेज पोताना नाम लेइने बतावे छे. अथवा पाणी अमारा शरीरनी शोभा
माटे अमारा सिद्धान्तमा बताव्यु छे. विभूषा एटले हाथ, पग, मलद्वार तथा मुख विगेरे धोवां, तथा वस्त्र वासण विगेरे घोबा, हए प्रमाणे स्नान विगेरे पवित्र अनुष्ठान करनारने कंइपण दोप नथी जैनाचार्य तेमन खंडन करीने कहे छे के
SACHC
For Private and Personal Use Only