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आचा०
॥१३३॥
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मेळव्यां हे, ते ओए तेमने वापस्वानी आशा आपी नथी, के तमो अमोने वापरो, छतां तेओ वापरे छे. जेम कोइ भिक्षु शाक्यना सचिन शरीरमांथी टुकडो छेदी से तो लेनारने अदत्तानो दोष लागे छे. कारण के ते पारकी वस्तु छे जेम कोइ पारकी गाय विगेरे चोरी जाय तो चोर गणाय, एज प्रमाणे अकायना जीवोए जे शरीर ग्रहण करेला छे ते बीजा ले तो अदत्तादाननो दोष अवश्य लागे, कारण के स्वामीए तेमने आज्ञा आपी नथी,
शंका- जेनो कुत्रो के तळाव होय तेनी आज्ञा लड़ने कोइ पणी पीए, तो तेमां स्वामीए एकबार आज्ञा आपवाथी दोष लागतो नथी तेम पारकानुं ढोर होय, अने ते आज्ञा आपे अने बीजो मारे, तेमां दोष नथी आ पण साध्य अवस्थाबाज अमे कहेलं छे,
उत्तर- आपण साध्य अवस्थाने योग्य वतान्युं के कारण के पशु पण शरीर अर्पण करवाथी विमुखज छे. अने आर्य मर्यादा ओलंघनाराओ पोटेथी बराडा पाडता पशुने मारे छे. तो या माटे अदत्तादान न थाय? कारण के परमार्थचिंताओ जोतां कोइ पशु | विगेरेनो कोइ बीजो मालीक नथी. दवे वादी कहे छे के, जो जैनांना कद्देवा प्रमाणे मानीए, तो व्यवहारनी अंदर वधा लोकमां प्रसिद्ध गायना दान विगेरेनी रुढी तुटी जाय.
जैनाचार्य - भले ए पाप संबंध तुटी जाय, पण तेथी ते पशु विगेरे दासी तथा बळदनी माफक दुःखी नहि था अने हळ । तथा तलवारनी माफक बीजाओना दुःखनी उत्पत्तिनुं कारण पण नहि थाय एनाथी व्यतिरिक्त अने छेनार तथा देनार बन्नेने एकांतथी उपकार करनारी, आपवा लायक वीजी वस्तु जिनेन्द्र मतवाला बतावे छे कां छे के
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सूत्रम
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