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सूत्रम् ॥१३२॥
एमाणे प्रकाशन, महिमा चाब्द अवधारण अर्थमा छे. तेथीएम
.. आचा०पाणीनो जे कपडां विगेरे धोवाथी स्वभाव बदलाय ते स्वकाय शस्त्र तथा अमिथी तपावेलु तथा कचरा विगेरेथी मळेलु एवं त्रण
प्रकार पाणी जे अचित्त ययेलं होय तेज लेबु आ अप्कायना विषयमा विचारीनेज अमे आ पर्नु शस्त्र के तेज बताव्यु. पश्य कि| यापदबडे शिष्यने प्रेरणा करी के ते तुं जो ( आ पाणीनां शस्त्र छे) तेज बतावे के के २५ मुं सूत्र छ तेमा जुदां जुदां उनसेचन
जुदा (छांटq ) विगेरे शस्त्र भगवाने बताव्यां छे, अथवा पाठान्तरनां आ पाठ छे के
पुढोऽपासं पवेदितं । पप्रमाणे जुदां जुदां लक्षणवाला शखोवढे परिणामने पामेलं पाणी ग्रहण करे एम अपाश बताब्यु एटले अपाशथी एम सुचव्यु के अचित्त पाणी ले तो कर्मबन्ध न थाय ए प्रमाणे साधूआने, सचित्त तथा मिश्र पाणी त्यागीने केवळ अचिन पाणीए काम चलावं, जेओ शाक्यादि साधुश्रो छे ते अकायना उपभोगमा लीन थयेला छे, तेओ नियमयी अफायने हणे छे. अने लेना आश्रय६ मा रहेला बीजाओने पण हणे छे. आधी तेओने फक्त प्राणातिपातनो दोष नथी लागतो, पण बीजादोपोसाये लागे छे ते बतावे छे
अदुवा अदिन्नादाणं (सू० २६) | अथवा शब्दथी बीजा पक्षना उपन्यास द्वारवडे अभ्युच्चय बताथवा माटे छे तेथी एम जाणवू के अचित्त न थयेलुं पाणी वापरवामां प्राणातिपातनोदोप लागे छे एम नही पण तेनी साथे अदत्तादाननो पण दोष लागे छे. कारणके अकायना जीवोए जे शरीरो
ॐ
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