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आचा० ॥९६२॥
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असंख्यात लोकना जेटला प्रदेश धाय, तेटला जाणवा, अने ते पण बादर अपर्याप्ता तेजस्कायना जीव राशीथी असंख्यात गुणा छे. पण सूक्ष्म वनस्पति प्रत्येक शरीर पर्याप्ता के अपर्याप्ताज नयी कारण के साधारण अनन्ता छे. एवं पूर्वे विशेषण कहेलुं छे, अने साधारण वनस्पतिना जीवो सूक्ष्म, चादर, पर्याप्ता अने अपर्याप्ता एम, चार भेदे जुदा जुदा अन्नते लोकोना जेटला आकाश प्रदेश छे, तेटला जाणवा, आटलं तेमां विशेष है, के साधारण बादर पर्याप्तायी बादर अपर्याप्ता असंख्यातगुणा छे, अने बादर अपर्याप्ताथी सूक्ष्म अपर्याप्ता असंख्येय गुणा तेनाथी पण सूक्ष्म पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे. हवे आ वनस्पतिना जीवोनुं जीवत्व जेओ इच्छता नथी; तेमने जीवपणुं बताया नियुक्तिकार कहे छे.
एहिं सरीरेहिं पञ्च ते परूविया जीवा । सेसा आणागिज्झा, चक्खुणा जे न दोसंति ॥ १३५ ॥
पूर्वे बतात्रेला तरु शरीरवडे प्रत्यक्ष माणवाळा विषय वडे साक्षात् वनस्पति जीवो साध्या छे, तेनुं आ प्रमाणे अनुमान करवू. (१) आ शरीरो जीवव्यापार विना आवां न थाय. (२) जीवशरीर वृक्षो छे, कारणके, अक्ष (इन्द्रियो) थी जणाय छे. हाथ विगेरेना समूहवाळा शरीरनी माफक दृष्टांत छे (३) कदाचित् सचितो पण वृक्षो छे, कारण के ते जीवनुं शरीर छे. हाथ विगेरेना समूहनुं हति छे. (४) मंदविज्ञान सुख विगेरेवाळां झाडो छे, कारणके तेमां अव्यक्त चेतन समायलं छे. मृतेला विगेरे पुरुष दृष्टांत छे. तेज प्रमाणे कछे के
वृक्षादयोपलब्धिभावात्पाण्यादि संघातवदेह देहाः ॥
तद्वत्सजीवा अपि देहतायाः सुप्तादिवत् ज्ञानसुखादिमंतः ॥ १ ॥
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सूत्रम ॥ १६२ ॥