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आचा
सूत्रम
३१६३॥
॥१६३॥
प्रक्षो विगेरे इन्द्रियोनी उपलब्धिना भावथी हाथ विगेरेना समुहवाळाज शरीरनी माफक देडो छे तेनी माफक ते देहवाळा जीवो सूतेला विगेरेनी माफक ज्ञान मुख विगेरे वाला छे. (भावार्थ उपर आयी गयो हे,) बाकीना सूक्ष्म के ते आंखोथी देखाता नयी तेथी जिनेश्वरनी आज्ञाए प्रमाण करवा अने भगवाननु वचन सत्य तथा रागद्वेष विनायूँ कहेलं होबाथी आज्ञा प्रमाण छे. माटे ते मानयं जोइए हवे साधारण नां लक्षण कई छ.
साहारणमाहारो साहारण आणपाणगणं च । साहारण जीवाणं साहारणलक्खणं एयं ॥ १३६ ॥
एक शरीरमा साधे रहीने आहार विगेरे जेभो एक साथे ले, ते साधारण वनस्पति जीवो छे. अने तेज अनन्तकाय जीवोनु । सामान्य रीते एक साथे आहार लेबो, तथा वासोश्वास लेवानुहोवाथी ते साधारण लक्षण छे, एनो भावार्थ आ छे के एक जीव | | आहार ले, के श्वासोश्वास ले, त्यारे वधा अनन्ता जीको आहार ले, तथा श्वासोश्वास ले, हवे तेने वधारे खुलासा साथे कहे छे. | एगस्स उजं गहणं बहूण साहारणाण ते चेव । जं बहुयाणं गहणं समासओ तपि एगस्स ॥ १३७ ॥ 81
एक जीव जे श्वासोश्वासने योग्य पुद्गलो ले, ते घणा साधारण जीवोने उपयोगमा आवे; अने जे घणा जीवो थे, ते एकने पण तेज काम लागे छः हवे जे बीजोथी उगे छेः ते वनस्पति केवी रीते मकट थाय छे, ते बतावे छे. जोणिब्भृए बीए जीवो, वक्कमइ सो व अन्नो वा | जोऽविय मूले जीवो, सो चिय पत्ते पढमयाए ॥ १३८ ॥
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