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आचा० ॥ ८९ ॥
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उपयोगमा समावेश थाय तेत्रा मति श्रुत अज्ञानयुक्त पृथिवीकायिक जीव जाणवा तथा स्पर्शन इन्द्रिय वडे अचक्षु दर्शन पामेला जाणवा तथा ज्ञान आवरणीयादि आठ प्रकारना कर्मना उदयने भजनारा तथा बांधनारा जाणवा तथा लेश्या ते अध्यवसाय | विशेषरूप छे तेषां कृष्ण, नील कापोत, अने तैजस. ए चार लेश्याने ते ओ मेळवे छे. तथा दशविध संज्ञा पामेला छे. ते पूर्वे आहार विगेरे कही गया छीए. तथा सूक्ष्म उच्छास निश्वास सहित छे, धुं छे, के
पुढचिकाइयाणं भंते! जीवा आणवन्ति वा पाणवंति वा ऊससन्ति वा नीससंति वा? गोयमा ! अविरहियं सतयं चेत्र आणवन्ति वा पाणवन्ति वा ऊससंति वा नीससन्ति वा ।
गौतम इन्द्रभूति महाराज पूछे छे. हे भगवन्! पृथिवीकायिक जीवो श्वास विगेरे ले छे? त्यारे जिनेश्वर भगवान कहे छे. हे गौतम! जरा पण विसामो लीधा विना पृथिवीकाय उसासो निसासो लीधा करे छे. तथा कषायो क्रोधादि पण सूक्ष्म होय छे. ए ममाणे जीव लक्षण ते उपयोग विगेरेथी लइने कषाय सुधीना पृथिवीकायना जीवोमां होय छे. अने ते जीव लक्षण समूदवाळी होवाथी मनुष्यनी माफक पृथिवी पण सचित्त जाणवी. शंका--आप कहे ते असिद्धवडे असिद्धज साधवा जेतुं छे. केमके उपयोग विगेरे क्षण पृथिवीrani मग देखातां नथी! उत्तर तमारूं कहे सत्य छे के उपयोग विगेरे लक्षणो पृथिवीकायम मगट देखातां नथी. कारण के ते लक्षणो तेमां अमगटपणे छे. जेम कोइ माणस घणाज प्रमाणमां नसो चढे तेषु मदिरा पान करे अने तेनुं चित व्याकुळ पड़ जाय तेथी तेने प्रगट भान होतुं नयी पण सूक्ष्म होय छे. तेटला गावे कंइ लेने अचित न गणी शकाव
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सूत्रम् ॥। ८९ ।।