________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
तेज प्रमाणे बीजी अगोर पण अमगट चेतनानो संभव जाणवो. आचा० शंका- अहिं पीधेला विगेरेगा श्वासोचास विगेरे अध्यक चेतनानु चिन्ह छे. पण पृथिवीकायमां ते जरापण चिन्ह देखातुं नथी. 181 सूत्रम्
समाधान-तेम नथी, पृथिवीकायमां पण मांसना अंकुर पसानी माफक समान जातित्राला लताना उभेदादि चेतना त IN चिन्ह छे. कारण के अव्यक्त चेतनावालामां पण जेमां एक पण चेतनानो दाखलो चिन्ह मळी आवे छे एवी वनस्पति माफक P॥ ९॥
चेतना मानी लेवी. अने वनस्पतिमा जीव चतन्य छे. एम चोरूखु जणाय छे. कारण के तेओ ऋतु, ऋतुमा ऋतुने लायक फुल फलो आपे छे. (चैतन्य विनानी मुकी वनस्पति फळ आपी शकती नथी) तेथी वनस्पतिमां चैतन्य छे एम अव्यक्त भने उपयोग विगेरे। लक्षण तेमा होवाथी सिद्ध ययु. के पृथिवी सचित्त छे शंका पत्थरनी पाट विगेरे कठण पूदगलबाळाने चेतना पांथी होय? तेनुं । समाधान करवा नीचेनी गाथा कहे छे
अट्ठी जहा सरीरंमि, अणुगयं चेयण खरं दिई । एवं जीवाणुगयं, पुढविसरीरं खरं होई ॥८५॥
जेम शरीरमा रहेलु हाइकुं कठण के पण चेतन छे. (कारण के हमेशां वधतु देखाय छे) तेवीन रीते जीववाळु पृथिवी शरीर कठण छे. हवे लक्षणद्वार कहीने तुरतज परिमाणद्वार नियुक्तिकार कहे छे. जे बायारपजत्ता पयरस्स असंखभागमित्ताते, सेसा तिन्निवि रासी, वीसुं लोया असंखिज्जा ॥८६॥
पृथिवीकाय चार प्रकारे छे ते आ प्रमाणे -
For Private and Personal Use Only