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आचा०
सूत्रम्
२८२८२-८
॥ ९१ ॥
(१), बादर पर्याप्ता (२) बादर अपर्याप्ता (३) सूक्ष्मअपर्याप्ता (४) सूक्ष्म पर्याप्ता, तेमां जे बादर पर्याप्ता छे ते संवर्तित । । लोकमां जे प्रतर छे ते ना असंख्येय भाग मात्रमा रहेनारा प्रदेशनो जे समूह तेनी बरोबर जाणवा, बाकीनी श्रण गशीओ प्रत्येक छ. ते असंख्यात लोकाकाशना जेटला आकाश प्रदेश तेनी राशीममाणे जणवा आचारे भेदे अनुक्रमे एक एकथी घणाम जाणवा. का छे के
सम्वत्थोवा बादरपुढविकाइया पजत्ता, बादरपुढविकाइया अपजत्ता, असंखेजगुणा, सुहुम पुढविकाइया, अपजत्ता, असंखेजगुणा सुहमपुढविकाइया पजत्ता असंखेजगुणा ।
बादर पर्याप्ता सौथी योटा छे तेना करता वादर अपर्याशा असंख्यात गुणा छे. तेनाथी सू० अपर्याप्ता असंख्यात गुणा अने तैनाथी सू० पर्याप्ता असंख्यात गुणा छे. हवे बीजी रीते प्रण राशीनु परिमाण बतावे छे. पत्थेण व कुडवेणव, जह कोइ मिणिज्ज सव धन्नाई। एवं मविजमाणा, हवंति लोया असंखिज्जा ॥८॥
जेम कोइ माणस पोताना वधा अनामने प्रस्थ अथवा कुडव (एक जातना माष) थी मापे छे तेवीन रीते जो कोइपण माणस असद्भाव प्रज्ञापनाने भंगीकार करीने आ जगतनेज कुडव रुप बनाने मध्यम अवगाहनावाला पृथिवीकायना जीवोने जो मापवा | मांडे तो असंख्यात लोकोने पृथिवीकाथनानीवो पूरी नाखे, हवे बीजी रीते परिमाण बतावे छे. लोगागासपएसे इकिक निक्खिये पुढविजीवं । एवं मविज्जमाणा, हवंति लोया असंखिज्जा ॥ ८८ ॥
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