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॥८॥
P गाथा स्पष्ट छे तेनो अर्थ आछे, के, एफ, ग्रे, ण, अन्ने संख्याता, जीवो एक एक शरीरमा रहेनारा देखादा नयी. पण PM आचा०15असंख्याता जीवोना असंख्याता शरीर साथे मळे न्यारे तेनो समूह आपणी नजरे आवे, एवां तेमनां शीणां शरीर छे. आ केवी सूत्रम्
रीते मानवामां आवे के पृथिवीकायमां पण जीव छे? उत्तर-तेमां रहेला शरीरनी उपलब्धीची शरीरयां रहेनार आत्मानी प्रतीति ॥ ८॥ छे जेम गाय, घोडा विगेरेनी प्रतीति थाय छे तेम अहिं पण जाणवी ते बतावे हे,
एएहिं सरीरे हिं पच्चक्खं ते परूविया हुंति । सेसा आणागिज्झा, चक्खुफास न जं इंति ॥ ८३ ॥ 12
असंख्यातपणे मेळवता पृथिवी शर्करा विगेरे जुदा भेदवाळा शरीरोवडे ते शरीरवाळा शरीरबडे साक्षात् कहेवाय छे. वाकीना सूक्ष्म जीवो आपणी पुदिनी बहार होवाथी ते जिनेवानी आज्ञा प्रमाणे मानवा जाइए कारण के ते घाग देखाता नथी. अहिं| 'स्पर्श' ए शब्द मूळमां छे. तेनो अर्थ चक्षुनो विषय एम करतो. प्ररुपणा द्वार पुर थयु. इवे लक्षणद्वार कहे छे. उवओगजोगअज्झव,साणे मइसुय अचक्खुदंसे य । अढविहोदय ले या, सन्तुस्सासे कसाया य ॥ ८४ ॥
तेमां पृथिवीकाय विगेरे स्त्याना (एक जातनी उंथ) ना उदयवी जे उपयोग शक्ति अव्यक्त छे ते ज्ञान दर्शन रुपवाळी छे | | गज रूपे उपयोग लक्षण हे. तथा योग ते कायानो एकलोन छे. अने औदारिक तथा औदारिकमिश्र तथा कार्मणरूप वृद्ध माणसनी लाकडी समान कर्भ धारी जीवोने आलंबन माटे चपराय छे. तया अध्यवसाय ते आत्माना सूक्ष्म परिणाम विशेष छे. अने ते में लक्षण छे. अव्यक्त चैतन्य पुरुगना मनमा उत्पन्न धयेली चिंता विशेषनी माफक ते लक्षमा न आवे तेवा जाणवा तया साकार
SASAR
करवाकर
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