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आचा० ॥१८३॥
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जे त्रास पाये ते त्रस कहेवाय तेओनुं शरीर ते सकाय, तेना द्वारो जे पृथिवीकायां कलां तेज प्रमाणे छे. पण विधान परिमाण उपभोग, शस्त्र, अने लक्षण ते द्वारोमां कंक फेर छे. अहिं निर्युतिमां 'च' शब्द ग्रहण करेलो होवाथी लक्षणद्वार लीधुं छे, माथी He faaiनद्वार कहे छे.
दुविहा खलु तस जीवा लद्धितसा चैव गतसा चेत्र । लद्धीय तेउवाऊ, तेणऽहिगारो इहं नत्थि ॥ १५३ ॥ म जीवो के प्रकारना छे, हाले चाले ते बस कहेवाय अने जीववाथी एटले माणने पारी राखदाथी जोब छे, हवे ते त्रस जीव प्रकारे छे ( १ ) लब्धि स ( २ ) गति बस, लब्धत्रस तेजस्कायत्रस तथा वायुत्रस एम वे प्रकारे छे. लब्धि ते शक्ति मात्र छे, तेजस्कामत्रसनुं वर्णन तेजस्कायना उद्देशामां आवी गयुं छे अने वायुत्रसतुं वर्णन वायुना उद्देशामां आवशे, तेथी लब्धिसनी अहिं बधारे जरूर नथी, तेने छोडीने गतित्रसतुं वर्णन करे छे. ते केटला छे अने तेना भेद क्या छे ते बतावे छे. नेरइयतिरिय मणुया, सुराय गइओ चउव्विहा चेत्र । पज्जताऽपजत्ता नेरइयाईय अनायवा ॥१५४॥
नारक एटले रत्नप्रभाथी आरंभीने महातम पृथिवी पर्यंत जे नरकमां रहेनारा जीवो छे; तेना सात भेद छे. तथा द्विइन्द्रिय त्रण इन्द्रिय, चार इन्द्रिय, तथा पंचेन्द्रियवाळा पशु पक्षी तथा तीरखं चालनार पाणी विगेरे तिथेच कड़ेवाय अने मलमूत्रमां | उत्पन्न घनारा तथा गर्भमा उत्पन्न यनारा ते मनुष्य छे, भवनपति, व्यंतर, ज्योतिष्क अने वैमानिक ते सुर छे, आ गति त्रस कहेवाय छे। अने ते चार प्रकारे छे. नाम कर्मनो उदय थवाथी प्राप्त करेल गतिने मेळववाथी ते गति श्रस कहेवाय. आ नरकादि
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सूत्रम
॥१८३॥