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सूत्रम्
मारंभा. परिणाया भवति से हु मुणी परिण्णायकम्मे (सु०४७) तिबेमि ॥ पञ्चम उद्देशकः समाप्तः॥ आचा
आ वनस्पतिकायमा द्रव्य तथा भाव घेउ भेदथी शस्त्रनो आरंप करनाराओने आ शस्त्रना आरंभमां पाप छे, एम खबर न १४ होवाथी प्रत्याख्यान परिक्षाकडे तेोनो त्याग करता नथी, अने जे आरंभ नथी करता तेओने आरंभ करवामां पाप छे, एम खबर
होवाथी प्रत्याख्यान परिज्ञावडे तेनो त्याग करे छे. अने जेओ आ वनस्पति शखना आरंभनो त्याग करे छे, तेज मुनि परिज्ञात मकर्मा कडेवाय छे. ए बधुं पूर्व माफक जाग एबुं सुधर्मास्वामी कहे छे.
॥ शस्त्रपरिज्ञाअध्ययनमा मांचपा उद्देशानी टीका समाप्त थइ ।।। हचे पांचो उद्देशो बतायी छठा उद्देशानो अरंभ करे छे. आ छटा उद्देशानो पांचपा साये जे संबंध छे ते बतावे छे.
पांचमामां बनस्पतिकायर्नु वर्णन कर्यु स्थारपछी छहापां उसकायना उद्देशानुं वर्णन आवेलं होवाथी तेनु स्वरूप परावर ओ| ळखवाने आ उसकायनो उद्देशो शरु करे छे. तेनां उपक्रमादि चार अनुयोग द्वारो छे. ते पूर्व माफक कहेवा. ज्यां मुधी नाम निहप्पन्न निक्षेपामां उसकायनो उद्देशो आवे त्यां सुधो ले, अने नामनिष्पन्न निक्षेपामा प्रसकायनो उद्देशो ए प्रमाणे नाम राखg
तेने नामनिष्पन्न निक्षेपो जाणवो. त्रसकायनां पूर्वे कहेलो द्वारोनो क्रमथी भतिदेश करवा अने तेनाथी कंइक जुदा लक्षणवावं द्वारोन वर्णन करवा माटे नियुक्तिकार गाथा कहे छे.
तसकाए दाराई ताईजाई हवंति पुढवीए । नाणत्ती उ विहाणे परिमाणुवभोगसत्थे य॥१५॥
शारोतुं वर्णनयन्त्रनिक्षेपो नायवो. अमवावे मयां सुन ले भने चार अनुयोग द्वारा
गाथा कई कहेला बाल नामनिवास
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