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आचा०
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( आत्मानु अस्तित्व स्वीकारे तोज बधां कामनां छे. नहि तो ते ओतु बोलवुन आत्माना अभावे अप्रमाण छे ) ॥ १ ॥ प्रतिषेध करनार अने प्रतिषेध जो शून्य होय तो व केवी रीते वाय अने प्रतिषेध करनारना अभावमा प्रतिषिद्ध एवा जगतना पदार्थों सिद्ध थाय ए प्रमाणे जैनाचार्य कहे छे. के आ दरेकोनु अहिंज यथायोग्य रीते निराकरण समज वनमां समजवा माटे | वादीए शंका करेली के आत्मा नथी तो सूत्र शामाटे करबु तेनुं समाधान करें. हवे चालु बात कहे छे.
hi अकेला ने तेनी खबर नथी के हुं क्यांथी आव्यो छु एनावडे केटलाकनेज संज्ञानो निषेध करवाथी केटलाकने छे तेषण कहे समजवुतेमां सामान्य संज्ञानुं दरेक प्राणीमां सिद्धपणाची अने तेनु' कारण जाणनाथी अहिआ अकिंचित् पणे छे | ( सामान्य संज्ञानुं विशेष प्रयोजन नथी) पण अहिं विशिष्ट संज्ञानी जरुर छे अने ते केटलाकनेज होवाथी तथा ते संज्ञानु बीजा भवां जनार आत्माने स्पष्ट स्वीकार. ते संज्ञा उपयोगी पणाथी सामान्य संज्ञाना कारणना प्रतिपादनने छोडीने फक्त त्रिशिष्ट संज्ञाना कारणाने सूत्रकार बतावे छे.-
सेजं पुण जाणेजा सह संमइयाए परवागरणेण अण्णेसिं अंति एवा सोच्चा तंजहा - पुरत्थि माओ, वादिसाओ, आगओ अहमंसि, जाव अण्णयरिओ, दिसाओ अणु दिसाओ वा आगओ अहमंसि/एमेगेसिं जं णायं भवति अस्थि में आया, उबवाइए जोइमाओ (दिसाओ) अणुदिसाओ वा अणुसंचरइ, सवाओ दिसाओ अणु दिसाओ सोऽहं (सू. ४)
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सूत्रम
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