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सूत्रम् ९९ ॥
मन, पचन, काया, पत्रणेने कयजामा राखवाथी गुमा तथा पांच समिति ते इयाँ भाषा, येपणा, विगेरेथी युक्त एतले आचासम्मक रीते उभा थy q. चालविगेरे क्रियामा उद्यम करनार, ते संयत सर्व प्रकारे निदोष पस्न करनाग तथा सम्पदर्शन
विगेरे अनुष्ठान जेओन सा छे ते गुणोवाला जैन अणगार होय छे. पण पूर्वे बतावेला मात्र नामचीन अणगार पृथिवीकायना ९९॥ भीवाने हणनारा शाक्य मत विगेरेना साधुभो न लेवा. नाम निष्पक्ष निक्षेपो समाप्त भयो.ाचे सूत्र अनुगमा अस्खलितादि गुण युक्त सूत्र उच्चारवान छे. ते आ छे.
अहे लोए परिजण्णे दुस्संबोहे अविजाणए अस्सि लोए पवहिए तत्थ तत्थ पुढो पास आतुरापरिताति [ सू० १४]]
पूर्वनो संबंध बतावे छे. तेरमा मुत्रमा परिज्ञातकर्मा मुनि होय छे. पण जे कर्मना भेदने माणतो नथी ते अपरिझात कर्मा पोते भाव आर्त होय छे. ते बतावे छे. वळी पहेला सूत्र साये आ संबंध छे. सुधर्मस्वामी कहे छे के हे जंबू में सांभळ्यु ! ते ४
कहे छे. पूर्व उद्देशामां कहेलुं ते अने आ पण सांभब्युछे के अ?' विगेरे तथा परंपर संबंध आ प्रमाणे छे. 'के इह एगेसि णो | Mसमा भवति इति उक्तं' ते केवी रीने ते जीवोने संज्ञा न होय ते बतावे छे, ते जीवो पीडायला छे, तेथी बतावे छे, 'अट्टे'।
आर्तना निक्षेषा चार प्रकारे छे, नाम स्थापना सुगम छे. शरीर, भन्यशरीर अने ते थी व्यतिरिक्तनो आगमथी द्रव्यात गाडा
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