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विगेरेना चक्रोमां उद्धीमूळमां जे लोढानो पाटो खोळी चडावे ते द्रव्यात छे, भावात पण वे प्रकारे छे, आगपथौ नामआचा०६ मथी तेमां आगमथी ज्ञाता ते आर्त पदार्थने जाणनारो अने उपयोगमा राखनारो अने नो आगमथी औदियिक भावमा वर्तनारो ते 8 सूत्रम्
| राग द्वेषरुप ग्रहवडे घेरायला अंतरात्मावालो पियना वियोग विगेरे दुःख संकटमा निमग्न भावात तरीके गणाय छे, अथवा शब्दादि विषयो जे विषना विपाक जेबा छे, तेमां तेनी आकांक्षा होवाथी हित अहितना विचारमा शून्य मनवाळो होवाथी भावात छे, ॥१०॥ ते कर्मने एकठां करे छे, जेथी कबुं छे के :--
'सोडदियवसट्टेणं भंते जीवे किंबंध? किं चिणाइ? किं उव चिणाइ? गोयमा! अह कम्म पगडीओ, सिदिलबंधणवद्धाओ धणियबंधणबद्धाओ पकरे? जाब अणादियं चणं अणवदग्गं दीहमर चाउरन्तसंसारकन्तारमणुपरियइ'
श्रीवीरने पन-हे भगवान! कानथी सांभळयानो रसीओ बनी पीटातो जीव मुं बांधे छे, एकठे करे छे. उपचप करे? उचर- गौतम, आठ कर्मनी कतिमी जे शिथिल बंधवाळी होय सेने गाद धनवाळी करे हे, ते क्या सभी के जेम अनादि काब्धी रखडतो आवेलो तेम अनंत काळना लांबा पंथना चार गतिवाळा संसार कांतारमा भ्रमण करशे, ए प्रमाणे वीजी चार 0 इन्द्रियोना विषयमा ते स्पर्श इन्द्रिय सुधी समजबू, एज प्रमाणे क्रोध, मान, माया, लोभ, दर्शन मोहनीय, चारित्र मोहनीय विगेरेथी दा
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