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भाव आर्त संसारी जीवो पण चार गतिमां भ्रमण करनारा जाणवा. कं छे के :
रागद्दोसकसाएहिं इंदिएहि य पञ्चहिं । दुहा वा मोहणिजेण अट्टा संसारिणो जिया ॥ १ ॥ राग द्वेष अने कपायो बढे पांच इन्द्रियों तथा वे प्रकारना मोहनीय कर्मथी संसारी जीवो पीडायला छे. अथवा ज्ञान आव रणीय विगेरे शुभअशुभ जे आठ प्रकारनां कर्म छे तेनाथी पीडायलो ते कोण छे? तेनो उत्तर कहे छे. अवलोके ते लोक, एक, बे, त्रण, चार, पांच इन्द्रियवाळो जीव समूह ते अहिं लोक जाणवो. लोक शब्दना नाम, स्थापना, द्रव्य, क्षेत्र, काळ, भव, भाव, अने पर्याय ए आठ प्रकारे निक्षेप बतायी तेमi aera ra उदय वाळा लोकवडे अहिं अधिकार कहेवो, करण के जेटलो जन समूह आर्त छे ते सर्व परिन नाम परिपेलव निःसार छे, औपशमिक विगेरे प्रशस्त भाव रहित अथवा अन्यभिचारी मोक्ष साधन विनानो छे.
(सम्पवदर्शन ज्ञान चारित्र ते मोक्षनो उपाय लेना विना संसारी जीव मात्र दुष्ट भावोमां रही पोते पीड़ाय छे। अने बीजाने पीडी नवां चीकणां कर्म बांधी चारे गतिमां अनंत काळ भमे छे.) परियुन शब्द वे मकारे छे. द्रव्यथी अने भावथी तेमां भावथी सचित्त परिधून ते जीर्ण शरीरवाळ बुढो अथवा जीर्ण जुनुं झाड अने अचित्त द्रव्य परियुन ते जीर्ण वस्त्र विगेरे अने भाव परिधुन ते औदविक भावनना उद्गथी प्रशस्त ज्ञान विगेरेथी रहित केम विकल ? अनंत गुणोथी परिहाणीथी कहे छे. पांच, चार, त्रण, ये एक इंद्रियवाळा जीव क्रमयी ज्ञाने विकल ओछा ज्ञानवाळा छे. तेमां सौथी ओछा ज्ञानवाळा सूक्ष्म निगोदना अपर्याप्त जीवो
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सूत्रम्
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