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सूत्रम्
४२.
॥१२९॥
| अप्कायना जीवोने दुःख याग छे, तेनुं फळ आ पमाणे छे. अहित माटे अयोधिलाभ माटे अर्थात् पाणीना जीवोने दुःख देनारनु है आचा० अहित थाय छे. तथा सम्यकत्व (धर्म बीज ) नाश थाय छे. आ वधुं समजनारो पुरुष ग्रहण करवा योग्य सम्यक् दर्शन विगेरे सारी
रीते भगवान अथवा मुसाधुओ पासे सांभलीने आ लोकना केटलाक साधुओने जे जाणपणुं थाय छे ते वतावे छे. ॥१२९॥
EL आ अप्पकायने दुःख देवं ते खरेखर ग्रन्थ, (पापनो समूह एकठो थवो) मोह, मार, नर्क छे. छतां तेने अर्थे गृद्ध ययेलो
लोक पाणीने दुःख देनारा विरुप शस्त्रोचडे पाणीने दुःख देवा साथे तेने आश्री वीजा अनेक जीवोने जुदी जुदी रीते हणे छे, ते PI वधु पूर्व माफक जाण'.. फरीथी सुधर्मास्वामी कहे छे के आ अकाप संबंधी तत्वनुं वृत्तांत में पूर्व सांभब्युं ते उदयमा रहेला 8 पाणीओ पोरा, मत्स्य विगेरे जे जीवो के तेने पण पाणीना समारंभ करनारो हणे छे. अथवा बीजो संबंध आ छे के पर्वे कहेलं दाउदक शास्त्र आरंभतो बीजा अनेक जीवोने अनेक रीते हणे छे.
शंका-ए केवी रीते जाणवु शक्य छे ! उत्तर-जीवो छे. ते अमे पूर्व कही गया छीए, ___शंका-ते केटला छे.? उत्तर-जीवो अनेक छे.
अहिआ जीवन फरी उपादान उदकमा रहेला घणा जीवो छे ते जणाववा माटे कयु छे तेथी पम समजवू के एक एकजीव भेदमा | उदकने आश्री असंख्यात पाणीओ छे. ए प्रमाणे तेओ अकायनो समारंभ करता ते पुरुषो पाणीने तथा पाणीना आश्रयना घणा जीवोने मारनारा थाय छे. ते जाणवू, .
कलाकार
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