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आचा
सूत्रम्
॥१२८॥
॥१२८॥
खलमारे एस खल णरए, इच्चत्थं गढिए लोए जमिण विरूवरुवेहिं सरथे हि उदयकम्म समारंभेणं उदयसत्थं समारभभाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ से बेमि संति पाणा उदयनिस्सिया जीवा अणेगे (सू० २३)
अन्य साधुओ पोतानी प्रव्रज्याने लजावनारा अथवा सावध अनुष्ठानथी लजा पामेला जुदा पढेला शाक्य, उलूक, कमभुक, कपिल, विगेरेना जे मुनिओ छे तेमने तुं जो, एबुं जैनाचार्य शिष्यने कहे छे. अविवक्षित कर्म बाला छतां अकर्मक याय के. जेमके तुं जो मृग दोडे छ. ए प्रमाणे बीजी विभक्तिना भर्थमां पहेलीनो प्रत्यय छे, तेनो अर्थ आ छे के शाक्य विगेरे साधुओ दिक्षा लीधेली छे छतां सावध अनुष्ठान करे छे. एवा जुदा जुदा पहेलाने तुं जो, नेओप जेनावडे साधुने अयोग्य | आचरण कर्यु ते आ प्रमाणे बताव्यु, से कहे छे के अमे साधु छीए एयु केटलाक शाक्यादि बतावे छे ते व्यर्थ बतावे छे, कारण
के तेओ उत्सेचन, अग्नि विद्यापन, विगेरे शस्त्रोथी स्वकाय अने परकाय ए वे भेदथी भिन्न शस्त्रोचडे उदक फर्म (पाणीने दुःख | देव ) करे छे. उदकना कर्म समारंभ वडे अथवा उदकमां शस्त्र चलावे छे. अने तेथी ते कर्म करतां वनस्पति वथा वे इन्द्रिय जीव विगेरे हणे हे. त्या आगळ निचे करीने जिनेश्वर देवे परिक्षा बतायी छे के जेम आ जीवितव्यनाज परिबंदन, मानन, पूजन, जन्म मरणथी मूकवाने माटे तथा दुःखनो नाश करवा जे करे छे ते, बतावे छे. पोते पाणीना जीवोनो समारंभ करे छे, बीजाओ पासे समारंभ करावे छे, अने समारंभ करनाराने अनुमोदे छे. ते करवू करावबुं अनुमोद, अने तेनाथी
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