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आचा०
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वे शाक्यादि उदक आश्रित येइन्द्रिय जीवोने इच्छे ले पण उदकने नहि, ते बतावे छे,
इहं च खलु भो! अणगाराणं उदयजीवा वियाहिया (सू० २४)
अज्ञातपुत्र महावीर सेना प्रवचन ते बार अंग जे गणी पिटक नामे ओळखाय छे, तेमां साधुओने बतायुं छे के उदकरुप जीव छे अने 'च' शब्दथी सेने आश्रित पोरा छेदनक, लोद्रणक, भमरा, माछलां विगेरे अनेक जीवो छे तेमां अवधारण फळ आ छे के जैन शास्त्र माफक वीजामां आवी रीते पाणीना जीवो सिद्ध नथी कर्या,
शंका- जो एम होय, के पाणीज जीव छे तो तेनो वारंवार परिभोग करता साधुओ पण पाणीना जीवोना घातक सिद्ध थशे ? उत्तर—एम नथी पण अमे पाणीना सचित्त, अचित्त अने मिश्र एप त्रण भेद मानीए छीए अने अति, अपायनो उपभोग थाय, एवी विधि छे, पण सचित्त अथवा मिश्र पाणी साधु न वापरे.
प्रश्न- आ पाणी अचित स्वभावथी थाय छे के शखना संबंधथी !
उत्तर- बन्ने मकारे एम जे अष्काय स्वभावथी अचित्त छे, तेने जो बाह्य शस्त्रनो संपर्क न थाय, तो तेने आचेत जाणनारा पण केवलज्ञानी मनःपर्यायज्ञानी अवधि तथा श्रुतज्ञानी मुनिओ पण तेने वापरे नहिं, कारण के तेथी मर्यादा तुटी जवानी बीक रहे है. जेमके गुरु परंपराथी सांभळीए छीए, के भगवान् श्रीमहावीरे पूर्ण निर्मळ पाणीथी उलसत्वरंगवाळो तथा शेवाळ समूहास विगेरे
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सूत्रम्
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