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सूत्रम् ॥ १७ ॥
* भा आचार ग्रन्थ बार अंगोमा पहेलु कहीने तेनुं कारण बतावे छे. अहीं मोक्षनो उपाय जे चरण करण छे ते वतावे हे. आ आचा०प्रवचननो सार छे कारण के ते मुरूप मोक्षनो हेतु छे; एम स्वीकार्यु छे. अने ए आचारमा रहेलो, बीजां अंगोनु अध्ययन
क रवाने योग्य छे. तेथी तेने पहेलं बतायुं छे. ॥९॥ ॥१७॥
हचे गणिद्वार कहे छे. साधुवर्ग अथवा गुणोनो गण जेने होय ते गणी भने आचारने आधीन गणिपणुं छे ते बतावे छे.. आयारम्मि अहीए जं नाओ होइ समणधम्मो उ । तम्हा आयारधरो भण्णइ पढमं गणिहाणं ॥१०॥ जे आचार, अध्ययनथी दश भकारनो क्षान्त्यादि भयवा चरण करण आत्मा श्रमण धर्म नाणीतो थाय छे, तेथी बधा गणिपगाना कारणमा आचार घरपणु पहेलं अथवा मुख्य गणिस्थान छे ।। १०॥ (गणिपणुं कोण धरावे तेनो उत्तर ए मूवव्यो के बधा गुणोमा मुख्य गुण आचार छे माटे तेनो आचार सारो होवो जोइए ) इवे परिमाण बतावे छे. आ अध्ययनथी, पदथी, वे 8 प्रकारे बतावे छे.
णवबंभचेरमइओ, अट्टारसपयसहस्सिओ वेओ। हवइ य संपचचूलो बहुबहुतरओ पयग्गेणं ॥ ११ ॥ H मा अध्ययनयी नन ब्रह्मचर्य नामथी अध्ययनरुप आ ग्रन्थ छे. अने पदथी अद्वार हजार पदरुप छे, वेद शब्दथी एम बतावेछे,
के जेना वडे, होय, अने उपादेय, पदार्थोन स्वरूप जाणे ते वेद, आ क्षायोपशमिक भावमा वर्तनारो आ आचार ग्रन्थ के (आचारिने बदले मूळमां वेद शन चापों छे) तेनी साथे पांच चढामो छे. तेथी पांच चुडावाळी थाय छे कहेवामा जे बाकी खुलासो
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