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तावेला आचार, आचाल, अगाल, आकर, आवास, आमर्श अंग, आचीर्ण, आ जाति, अने आ मोक्ष, ए दश शब्दो किंचित || आचा०विशेष बतावनारा अने घणे भागे मळता एक अर्थमा छे, जेमके इन्द्रना पर्यायवाचीशब्दो शक, पुरंदर विगेरे छे, अने एक अर्थ सूत्रम्
कहेनारा, छन्द, चिति, बन्ध, अनुलोमी, विगेरे प्रतिपत्तिना अर्थ माटे बताया छे. कयुछे केबंधाणुलोमया खल्ल सत्थंमि य लाघवं असंमोहो । संतगुणदीवणाविय एगगुणा हवंतेए ॥२॥
॥१६॥ बंध, अनुलोमता, लाघव, असंमोह, सदगुण दीपन ए शास्त्रमा निश्चय करीने एकार्थना गुणो छ [जुदा जुदा देशना रहेवासी | शिष्योने समजवामां आ पर्यायाथी अर्थनी दृढता सारी थाय छे अने बरोबर समजवाथी तेमा प्रवृत्ति होसथी धाय ॥ ७॥ वे प्रवर्तना द्वार कहे छे, भगवाने क्यारे आचार प्रथ कह्यो ते बतावे छे.
सम्वेसि आयारो तित्थस्स पवत्तणे पढमयाए । सेसाई अंगाई एकारस आणुपुबीए ॥८॥ बधा तीर्थकरो तीर्थ स्थापे ते वखते प्रथम आचारनो अर्थ कहे तेम पूर्वमा अने वर्तमान अने भविष्यमा पण जाणवू त्यारपछी बीजां अग्यार अंगनो विषय कहे छे अर्थने सांभळीने शिष्योने हितार्थे गणधर भगवंतो एज अनुपूर्वीवढे सूत्रोनी रचना करे २. ॥ ८॥ आ पहेलो शा माटे कह्यो ते बतावे छे.
आयारो अंगाणं पढम अंग दुवालसण्हपि । इत्थ य मोक्खोवाओ एस य सारो पवयणस्स ॥ ९॥
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