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आचा०
॥१२३॥
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काळ. शक्य नथी ते आत्मानो अर्थ प्रत्यक्ष छे तेथी बधारे बार परिणाम न टके कड़क फेरफार थाय. ॥ १ ॥
ये उपयोगनी परिवृत्ति ते स्वभावथीज हेतु रहित छे. कारण के स्वभाव ते आत्माथी प्रत्यक्ष छे. अने त्यां हेतु बताववा व्यर्थज छे || २ || अने अवस्थित काळ ते वृद्धि, हानि, लक्षणवाला बन्ने अने यत्र मध्य, अने वज्र मध्य एबेनी माफक आठ समय छे. त्यार पछी अवश्य बदलाव आ वृद्धि हानिनुं रहेलं परिणाम ते केवळी जाणे, पण केवळ ज्ञान बिनाना उद्यस्थ जीवोने जणाय नहि. जो के प्रवज्या लीधा पछीना काळमां सिद्धांत सागरने अवगाहन करतो संवेग वैराग्य भावना भाविक अंतर आत्मावाळो कोई मुनि बघता परिणाम ने भजे छे तेज क छे :--
|जह जह सुयमावगाहइ अइसयररस पसरसंजु यम उव्वं । तह तह पल्हाइ मुणी नवनव संवेगसद्धाए ॥ १ ॥
सुनि जेम जेम श्रुतने अवगाहे, (भणे) तेम तेम अतिशय रसना मसस्थी संयुक्त अपूर्व आनंदने नवा नवा संवेगनी श्रद्धावडे पामे छे, तो पण वघवावाळा घोडा अने उत्तम भावमाथी देठे पडनारा घणा तेथी कहीए छीए के ते श्रद्धा पाळे, एटले निरंतर उत्तमभाव वधारे, हवे ते केवी रीते पाळे, ते कहीए छीए, शंका छोडीने पाळे, आशंका वे मकारनी छे. सर्व शंका अने देश शंका आ सर्व शंकामा जिनेश्वरनो मार्ग छे के नहिं अने देश शंकामां अपकाय विगेरेना जीवा छे के नहि? कारण के प्रवचनमां विशेष प्रकारे कहीने बतावेल. छे. तेथी स्पष्ट चेतना लिंगना अभावथी जीवो नथी विगेरे शंकाओने दूर करी साधुना संपूर्ण गुणाने पाळे, अथवा विश्रोत ये प्रकारे छे. द्रव्यथी नदी विगेरेना झरणो जोरथी चाले छे ते, अने भाव विश्रोत ते मोक्ष तरफ सम्यग्दर्शन विगेरे
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सूत्रम ॥१३३॥