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आ आखा सूत्रनो सार ए छे के हे जंबूप्रभु पासे में सांभळ्यु छे के जेश्रो सत्र प्रकारनो निर्दोष संयम पाळे सम्यकदर्शन आचाज्ञामचारित्रनी आराधना करे तथा पोतानी शक्ति गोपवे नहि तथा वधा कपाय विगेरे दुर्गुणोने छोडे तेमनेज साधु जाणवा. कयु छे के.18सुत्रम्
सोही य उज्जुयभूयस्स धम्मो सुद्धस्स चिट्ठड' ति. ॥१२२ ॥
॥१२२॥ पायश्चित्त ते निष्कपटीनुं छे, अने धर्म पवित्र भाववालानो छे. तो आ बधी माया वेलडीने दूर करी शें करे? ते कहे छे.
जाए सद्धाए निक्खंतो तमेव अणुपालिजा वियहित्ता विसोत्तियं (सू० १९) वधता संगम स्थान कंडक रुपवाळी श्रद्धावढे दिक्षा लीधेली ते आखी जींदगी सुधी पोतानी निर्मळ श्रद्धा पाळे कारण के मायः एवो नियम छे के परिणाम उच्च भावमा चडेला होय त्यारेज दिक्षा ले छे, अने पाछळ्थी संयम श्रेणीने पामेलो तेने | परिणाम बधे घटे, अथवा बरोबर रहे तेमां वृद्धिकाळ के हानिकाळ एक समयथी मानीने उत्कर्षथी अंतर्मुहुर्त जाणवो पण एथी वधारे काळ संकलेश के विशृद्धि न होप. का छे के:नान्तर्मुहुर्तकालमतिवृत्य शक्यं हि जगति सङ्क्तेष्टुम् नापि विशोढुं शक्यं प्रत्यक्षो ह्यात्मनः सोऽर्थः ॥१॥ उपयोगद्वयपरिवृत्तिः सा निहेतुका स्वभावत्वात् आत्मप्रत्यक्षो हि स्वभावो व्यर्थाऽत्र हेतुक्तिः ॥२॥ अंतमहत काळने उल्लंघीने जगतमां वधारे कलेश करवाने शक्तिमान् नथी तेज प्रमाणे आत्माने शुद्ध करवाने पण वधारे ।
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