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सूत्रम
आचा० 18 तेथी अमे अईन जिनेश्वरना वचननो अनुपोग (अर्थकथन) करीए छीए ते चार प्रकारे छे ते आप्रमाणे छे.
१धर्मकथानुयोग, (२) गणितानुयोग (३) द्रव्यानुयोग अने (४) चरण करणानुयोग. तेमां धर्म कथानुयोग उत्तराध्ययन विगेरे ॥३॥ गणितानुयोग सूर्यप्राप्ति विगेरे द्रव्यानुयोग चौद पूर्व तथा संमति विगेरे न्यायना प्रन्यो, अने चरणकरणानुयोग ते आ आचारां-12
गादिमुथ छे ते चोथो अनुयोग पधामां मुख्य के कारण के पाकीना प्रणा लेनो अर्थ बतावेलोछे. कहेल छ के"चरण पडिवत्ति हेउं जेणियरे तिपिण अणुओग"त्ति (तथा) चरण पडिवत्ति हेऊ, धम्म कहा कालदिक्खमादीया। दविए दंसण सोहि, देसण सुद्धस्स चरणं तु ॥१॥
चारित्रना स्वीकारने माटे बाकीना बण अनुयोगो छे वळी चरणना स्वीकारनां कारणो धर्म कथा काळ अने दिक्षादिक छे. द्र व्यानुयोगथी दर्शन भूद्धि (साचा तत्वउपर आस्था) अने तेनाथी चारित्र ग्रहण थाय छे. गणधरोए पण तेथीन तेनुं प्रथम विवेचन
कर्यु छे. तेथी ते प्रमाणे आचारांगनो पहेलो अनुयोग करीए छीए. हवे ते अनुयोग मोक्ष देनारो होबाथी तेमां विघ्न होबानो &ा संभव छे कहेल छे के
श्रेयांसि बहु विघ्नानि, भवन्ति महतामपि । अश्रेयसि प्रवृत्ताना, क्वापि यान्ति विनयकाः ॥ १ ॥ जेटलां सारा कार्यो छे तेमा मोटामीने विघ्नो पण आवे छे पण अकल्याणमा प्रवर्तनाराओने कोइएण जगोए विघ्न भावतुं
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