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आचा०
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| एटला माटे कहे छे. आत्माने शरीरनो अधिष्ठाता एटले हुं ज्ञानथी अभिन्न गुणवाको प्रत्यक्ष सिध्ध छु, एवं दरेक जाणे छे तेथी तेने न लोपे.
शंका- आ अमे केवी रीते नाणीए के आत्मा शरीरमां घरना मालीक माफक रहेलो छे?
उत्तर- भूलाबाना स्वभाववालो देवोने प्रिय हे वादि! आगळ कहेलु छर्ता फरीने कवडावे छे, फरोधी समिळ, जेमके आ शरीर कोथी लवायु छे, तेनो संबंध आ शरीर साथ छे. तेथी कफ, लोही, अंग, उपांग विगेरे परिणतिने पामेलाथी अन्न विगेरे माफक छे, तेवीज रीते कोइ संधी राखनाराधीज उत्सृष्ट (त्यजागलं) छे. लीवेलं होवाथी अन्न मळ (विटा) नी माफक छे, बळी | तेज ममाणे ज्ञाननी उपलब्धिपूर्वक परिस्पंद ( शरीर हलन चलन ) पण भ्रांति रूप नथी, कारण के परिस्पंदपणे थवाथी तमारां वचन जेम बुद्धिपूर्वक बदलाय छे, तेम, बळी चोधुं अनुमान कहे छे, अंदर रहेलो मालीक हे तेना व्यापारने भजनारी इन्द्रियो छे. करणपणे होवाथी, जेम दातर विगेरे, उपयोग पूर्वक हाथी चाले तेम आ छे. आ प्रमाणे चार अनुमान प्रमाण आपीने | जीवने शरीरनी अंदर रहेलो सिद्ध कर्यो, ते प्रमाणे कुतर्क मार्गने अनुसरनारा हेतुनी माळा (श्रेणी) ने स्यादवाद कुहाडावडे | दरेक आत्मार्थी उच्छेद करवो, अर्थात् नास्तिकोने जीव सत्ता सिद्ध करी आपकी ए प्रमाणे जो उत्पत्ति अने प्राप्त थलो | आत्मा शुभ अशुभ फळने भोगवनारी जाणवा छतां कोइ न माने, तो ए प्रमाणे थतां जे अज्ञ छे तथा कुतर्क रूप तिमिरथी जेनां ज्ञान चक्षु हणायां छे, ते अपकायना जीवने न माने, ते अपकायने न मानतां सर्व प्रमाणथी सिद्ध एवा आत्माने पण उडावे छे !
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सूत्रम् ॥ १२६ ॥