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आचा०
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संज्ञा पोतानी इच्छाथी गये ते विकल्प करीने लोकोमां आचरण थाय छे ते, जेमके पुत्र विनाना प्राणीने लोक (स्वर्गनी प्राप्ति ) नथी. कुतरा छे ते यक्ष छे, विम देवो छे, कागडा दादाओ छे. मोरोना पीछाना वापरबाथी गर्भ रहे इत्यादि केटलीक वातो ज्ञान | आवरणना क्षय उपशमथी तथा स्वार्थरुप मोहना उदयधी संज्ञा थाय छे.
धर्म संज्ञामा राखी विगेरे उत्तम छे ते मोहनीय कर्मना क्षय उपशमधी थाय छे, ए सामान्यपणे लेवाथी पंचेन्द्रिय सम्यकदृष्टि तथा मिध्यादृष्टिओने पण होय छे. पण ओघ संज्ञा ते अव्यक्त उपयोग रूप छे. ते वेळाना समूहनुं उपर चडवापणुं विगेरे चिन्ह रुप छे, ते ज्ञानावरणीय कर्मनु थोडं क्षय उपशम यत आ संज्ञा थाय छे तेम जाणवुं पण आपणे तो पहेलां कहेली ज्ञान संज्ञानी । | जरुर होवाथी तेनो अधिकार छे अने तेनो निषेध कर्यो जाणवो के केटलाक जीवांने गति आगतिनु ज्ञान नथी. हवे निषेध संज्ञानबोध थवा माटे सूत्र कहे छे
-पुरिमाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, दाहिणाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, पञ्चतिथ माओ वा दिसाओ आओ अहमंसि, उत्तराओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, उड्ढाओ वा दिसाओ आगओ अहमंसि, अहोदिसाओ वा आगओ अहमंसि, अण्णयरीओ वा दिसाओ अणुदिसाओ वा आओ अहमंसि, एवमेगेसिं णो णायं भवति ( सू० २ )
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सूत्रम्
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