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सूत्रम
॥१७१॥
बुद्धिमान ते उपदेशने योग्य छे तेवा शिष्यने गुरु कहे छे के हे बुद्धिमान मुशिष्य, दिक्षा लइने जीवादि पदार्थोने जाणीने मोक्ष आचा० प्राप्त करे ले ते प्रमाणे तुं पण ज्ञान भणीने चारित्र पाळीने मोक्ष मेळच, कारण के सम्यक्ज्ञान पूर्वक करेली क्रिया सफळ (मोक्ष
आपनारी) छे. फरी अहीं कहे छे जेमा जीवाने अभय (भय विनानु) पद छे. ते अभयरूप संयम सत्तर भेदवाळो छे. ते सर्व भूतनी | रक्षा करनार संसारसागरथी तारनार निर्वाहक जाणीने (दरेक पुरुषे) वनस्पतिना आरंभथी निवृत्ति लेबी (दूर रहे) जोइए तेज हवे विवरीने वतावे छे.
जे परामर्थ तत्वने जाणनार हे नेणे वनस्पतिना आरंभने कडयां फळ आफ्नारो जाणीने न करवो, कारण के जे आरंभ न। करे, तेनेजप्रतिवशिष्ट इष्ट फळ'(मोक्ष)नी प्राप्ति छे. पण जे विना विचारे मृद थइ अंध बनीने वर्ते, तेने मोक्ष प्राप्ति नथी, कारणके 12 इटेला सर्वोत्तम स्थाने पहोचवामा प्रवर्तेला अंघो जे क्रिया करे, ते क्रिया तेना अंधपणाथी विघ्नरूप (उलटे रस्ते दोरे) ले, एम 5. मानवू तेवीरीते एकल ज्ञान पण क्रिया विना मोक्ष न आपे. जेमके एक घरमा आग लागी, त्यारे एक पंगु देखावा छतां पांगळा A पणाने लीधे नीकळवानी इच्छा छतां नीकळी न शक्यो, तेज प्रमाणे मुनिओए समजवू के आ प्रमाणे बोध पामीने तेमणे आरंभ
नो त्याग करचो, ए प्रमाणे जे सम्यकज्ञानपूर्वक जे निवृत्ति चारित्र अनुष्ठान करे तेज समस्त आरंभथी निवृत्त ययेल छे, एम चनावे छे. " तेज वनस्पति संबंधी मुक्त शयेला छे जे भो पूर्वे वरावर जाणी आरंभ न करे," हवे ते आ प्रमाणे निवृत्ति ले नार साधुओ शाक्यादिमां पण छे के नही ? के अहिं जीन शासनमांज छे? वे शिष्यना प्रश्नमा उत्तर कहे छे.
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