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के, पां सारु रुप देखीने रागी बने छे. अने रुप लेबाथी बीमा पण विषयोनो समावेश धायसे. कारण के एफना प्रणथी। आचा०४ तेनी जातीना बधाप लेवाय छे, अथवा पहेलो तथा छेल्लो, ले वाथी बचमांना आवी जाय एम जाणवं. ए ममाणे विषय लोकने 81 सूत्रम
तयताबी विवक्षित कहे छे. ॥१७॥ एस लोए वियाहिए, एत्थ अगुत्ते अणाणाए (सु. ४२)
॥१७६॥ भा-रूप रस, गंध, स्पर्श शन्द, विषय नापनो लोक कसो जेनाथी अबलोकाय ते लोक. आ वस्तुतः शन्दादि गुण लोकमां जे पुरुष मन, वचन, कायाथी अगुप्त होय अथवा मनथोपो थाय, अथवा बाचाबडे शम्दादिनी प्रार्थना करे अथवा काय वडे शब्दादिना विषय भोगमा जाय. ए प्रमाणे जे अगुप्त होय ते भगवाननी आज्ञामां वर्ततो नथी. ए प्रमाणे गुण | करे ! ते कहे के.
पुणो पुणो गुणासाए, चंकसमायारे (सु. ४३) जे अनेक बार अधादि गुणनो रागी बन्यो होय, ते पोताना आत्माने शब्दादि विषयनी वृदियी दर फरवाने समर्थ यतो । नथी, अने पाछो न फरवाथी फरी फरी गुणनो स्वादु बने के. निरंतर क्रिया करीने रसोनो स्वाद ले छ; अने ते जेदो थाय तेदो बतावे छे. आ "चक्र" ते असंयम छे, तेज नरकादि गतिमा लइ जाय हे. अने एका आचरणने करनारो जे छे, ते वक्र समाचारवालो (संयम रहित) अवश्यज भन्दादि विषयोनो रसिक बने छे. अने जीवोने दुःख देनार होवाथी ते चक्र समाचारवाळो जाणतो.
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