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आचा०
सूत्रम्
॥६५॥
॥६५॥
। (अहिं उत्तर नथी पण ज्यांसुधी तेरमा गुणस्थान सुधी जीव संसारमा होय त्यांमुधी योगी क्रिया करनार होय ए आठना, सातना
छना, अने एकना बंधनवाळो अनुक्रमे होय छे. ते अन्धातरथी जाणवं. ए प्रमाणे बीनाओनी शंका निवारण करवा गौतमखामीए । पूज्यु अने महावीर प्रभुए उत्तर आयो तेथी एम बताव्यु जे कर्मवादी छे तेज क्रियावादी जाणवा. आ वचनयी सांख्य मतवाळा जे आत्माने क्रिया विनानो माने मर्नु खंडन कर्यु ॥५॥
हवे पूर्वे कहेली आत्मपरिणतरुप क्रियाने विशिष्ट काळ बतावनार 'तिड' प्रत्ययवडे कहेता 'अहे' नाम हुँ पत्यय साधवा योग्य आत्माने तेज भवमा भवधि, मनः पर्याय, केवलज्ञान, जातिस्मरण, ए चार विशिष्ट संज्ञा शिवाय पण पणे काळमां करसनार मतिज्ञानवढे सद्भावनो अवगम ( जाणपणुं ) बतावबाने माटे कहे छे. __अकरिस्सं चऽहं कारवेसु चऽहं, करओ आवि साणुन्ने भविस्सामि (सू०६)
अहिंा सुत्रमा भूत, वर्तमान भने भविष्य काळनी अपेक्षाए जण तथा ते त्रण साथे करवु. कराव_ अने अनुमोदयु गणता नव | विकल्प थाय छे. ते आ प्रमाणे छे. में कयुः कराव्यु अने कर्ताने भलो जाण्यो, हु करु छ करावु छु, अने करावनारने अनुमोदु छु'. हुकरीश, करावीश, अने कर्ताने भलो जाणीश, एमां पहेलो भने छेल्लो ए वे भांगा सूत्रमाथीन लीधा छे तेथी करीने बाकीना मध्यमां आवी गया तेथी नवे भागान ग्रहण थयु (लीधा) एज अर्थने मगट करवा चीजो विकल्प डे के हु करावीश ए सुत्रबडे लीधो छे. आ नवे भागा सुखमां वे चकार होवाथी तथा अपिशब्द लेबाथी ते नव साथे मन, वचन, काया चिंतावतां २७) भेदो
२२-२२०२८
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