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आचा०
४१४१ ॥
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अग्निकानी व मळीने सातलाख योनि छे.
हवे मूळमांजेच शब्द छे, तेनो समुच्चित जे लक्षणद्वार छे ते कहे छे.
जह देह परिणामो रतिं खज्जोयगस्स सा उवमा | जरियस्सय जह उम्हा तओवमा तेउजीवाणं ॥ ११९ ॥ जेम देहना परिणाम, ते प्रतिविशिष्टि शरीर-शक्ति छे, ते रात्रीमा आगीयो जणाय छे, तेवी रीते आ देहनुं परिमाण जीव प्रयोगनी निवृत शक्ति देखाडे छे. एवी रीतेज अंगारा विगेरेनी पण प्रतिविशिष्ट प्रकाश विगेरे शक्ति अनुमानमां लेवाय छे. के, जीव प्रयोग विशेष वडे आ प्रकट थइ छे. (टीकाकारे निर्युक्तिनो अर्थ करता आगीयानुं दृष्टांत बतावी अंधारामां ते प्रकाशे छे, तेनी उपमा लइ जेम प्रकाशथी आगीओ जीव है, तेम अग्नि पण प्रकाश विगेरे शक्तिथी जीव छे, आ प्रयोग छे, अने ते शरीरना | परिमाण बडे बताव्यो; तेम अग्निकाय पण जीव मानवो), अथवा तावनी गरमी जीव-प्रयोगने छोडीने जती नथी; पण ते जीवथीं अधिष्ठित शरीरनी अंदरज रहे छे. आज उपमा व्यग्निकायना जीवोने छे, अने मरेला ताववाळा फोइ जगोपर देखावा नथी. ( मर्यापछी तात्र होतोज नथी). एज प्रमाणे अन्य व्यतिरेक बडे अग्निनुं सचिचपशुं मुक्त (जैन सिद्धान्त ) ग्रंथनी उत्पत्तिना मुख वडे स्वीकार्य छे. हवे प्रयोग (अनुमान) बतायीए छीए तेनो अर्थ आ छे.
अंगारा विगेरे जीव शरीर छे. कारण के जेम सारना विषाण विगेरे भेदाय छे, तेम ते पण छे, छेद्यत्वादि हेतु गणथी युक्त छे. ते प्रमाणे आत्माना संयोगथी प्रकट घयेलो अंगारा विगेरेनो प्रकाश परिणाम छे। अने ते शरीरमा रहेलो दोवाथी सिद्ध थाय
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सूत्रम
॥१४९॥