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आचा०
॥१३६॥
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तो पहेलाना उत्तरमां एज कहेतुं के जेनो मानेलो ते तेने आप्त (विश्वासलायक पुरुष ) छे. तेथी दूर करना योग्य के कारण केव अनाप्त छे. तेथी अष्कायना जीवोनुं तेने ज्ञान नथी अथवा तेने ज्ञान होय छतां तेना वधनी आज्ञा आपेली छे. तेथी तमारी माफकज ते अनाप्त छे, कारण के अमे पाणीनुं जीवपणुं पूर्वे साधी गया छीए अने तेमना कडेला सिद्धांतो पण सद्धर्मनी प्रेरणामां अप्रमाण थशे अने शेरीमा करता पुरुषना वाक्य माफक ते वाक्यो पण अनाप्त पुरुषनां कलां के एमन मनाशे,
ये वादीओ एम कहे के अपारो आगम आत प्रणीत नथी पण नित्य अकर्तृकज छे, तो नित्यपणुं सिद्ध यशे नहिं, कारण | के मारो आगम वर्णपद वाक्यवाको छे, तेथी कर्तृक छे अने विधि तथा प्रतिपेधरूपाळो छे उभव संमत सकतुक ग्रंथनी माफक स्वीकारया योग्य छे. अथवा आकाशादिनी माफक तमोरा प्रन्थने तमारुं नित्य मानयुं अमे अप्रमाण गणीएकीए ' कारण के आकाशनी माफक तमारो सिद्धांत नित्य नथी पण तेमां इंमेशा प्रत्यक्षनी पेठे फेरफार देखाय छे.
वीओ विभूषासूत्र बतावे छे तेना अवयवमां पण प्रश्न पूछता उत्तर देवाने तेओ समर्थ नहि थाय, जेमके अमेकहिभुं के-यतिने योग्य स्नान नथी, कारणके आभूषणनी माफक ते कामांग छे। अने स्नानमां कामांगता सर्व जन प्रसिद्ध छे. कं छे के
स्नानं मददकरं कामांग प्रथमं स्मृतम् । तस्मात्कामं परित्यज्य नैव स्नान्ति दमे रताः॥ स्नान, मद अने दर्प करनारुं छे, अने ते कामनुं प्रथम अंग कहेलुं छे, तेथी कामने छोडीने इन्द्रियोना दमनमा रहेनारा स्नान
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सूत्रम्
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