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पगना मूळमां नानी होचाथी मलक अने युध्न, (तळीआ) ना आकारे जती विशाळ थाय . आ बधार्नु तात्पर्य यंत्रथी माण, IP आचा०18 (यंत्र मळ्यु नधी) हवे भाव दिशा बतावे छे.
मणुया तिरिया काया तहऽग्गत्रीया चउकगा चउरो। देवा नेरइया वा अट्टरस होति भावदिसा ॥६॥ ॥४२॥
॥४२॥ मनुष्पना चार भेद थाय छे (१) संमूळनन (पुरुषादिकना मळ मूत्रथी जन्मेला) (२) कर्म भूमिना गर्भन (३) अकर्मभूमिना पनी (४) अंतीपना गर्भज, ते प्रमाणे तिर्य चोमां चे इंद्रियवाळा, त्रण इ दिगवाळा, चार इद्रियबाळा भने पांच इंद्रिश्वाळा ए चार भेदे ४ छे. अने पृथिवी, पाणी, अग्नि, वायु, ए चार काया छे. तथा वनस्पतिकायमां, अग्र, मूल, कंध अने पर्व, ए चारमा ज्यां बीन 18
हाय ते गीज प्रमाणे चार भेद था. तेमां नारकीय अने देव ने उमेरता अहार भेदे जीवन। व्यपदेश कराय छे ( आ अद्वार भेदे || IPजीव बतायो) भाव दिशा ते प्रकारे अढार जाणवी अहिं सामान्य दिशानुं ग्रहण छता जे दिशामा जोबोने अचिगान (न अटक-|
वा) पणे गति आगति स्पष्ट करी ते सर्वत्र संभव छे. ते दिशाबडे आपणे अधिकार छे तेथी तेनेज नियुक्तिकार साक्षात् बता
के. कारण के भावदिशाथी अविनाभावी ( सायेज रहेनारी) प्रसंगना सामथ्र्ययी अधिकृतज छे तेथी तेने माटेज बीजी दिशाओ चितवीए छोए. पण्णवगदिसहारस भाव दिसाओऽवि तत्तिया चेव । इकिक विधेजा हवन्ति अहारसऽद्वारा ॥ ६१ ॥ पण्णवगदिसाए पुण अहिगारो एत्थ होइ णायवो। जीवाण पुग्गलाण य एयासु गया गई अस्थिा६२।
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