________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
आचा०
॥ ५१ ॥
www.kobatirth.org
आत्माथी बीजुं नहि एवं अद्वैत माननारा विश्वनी परिणति रूप आत्माज माने छे कल छे के
एक एव भृतात्मा भूते भृते व्यवस्थितः । एकधा बहुधा चैव द्रश्यते जलचन्द्रवत् ॥ ५ ॥ निश्वये एक भूतात्मा सर्व भूतोमा रहेलो छे अने ते एकलो छतां जेम चन्द्र पागीमा जुदो जुदो देखाय छे, तेम ते आत्मा भूत भूतमां देखाय छे. वंळी कडेलले के
पुरुष एवेदं सर्वे यद्भुतं यच्च भाव्यम्' इति
आगम बघु
अने थवानुं छे ते सगळं एक पुरुषज छे विगेरे ए प्रमाणे अजीव पण पोताथी भने काळी नित्य छे इत्यादि उपर प्रमाणे वधु योजवृं. तेवीजरीते अक्रियावादीओना पण भेद छे. ते नास्तित्ववादी छे.
ओम पण जीव, अजीव, आव, बन्ध, संवर, निर्जरा, तथा मोक्ष ए सात पदार्थ छे. ते स्व अने पर ए बे भेदवडे तथा काळ, यहच्छा, नियति, स्वभाव, इश्वर, अने आत्मा ए छोडे fanत्रता- ८४) विकल्प थाय छे ते आ प्रमाणे छे. जीव स्वतः एटले पोतानाथी अने काळथी नथी तेमज जीव, परथी अने काळथी (सिद्ध यतो ) नथी. आ प्रमाणे काळ साथै लेतां वे भेद थया, तेज प्रमाणे यदृच्छा तथा नियति विगेरेमां पण सर्वे जीव पदार्थमां बार धाप ए प्रमाणे अजीवमां पण चार लेवा. ते बार सप्तक पटले ८४) थयां तेनो अर्थ आ छे. जीव पोताना काळथी नथी. अहि पदार्थोंना लक्षणवडे सत्ता | निश्चय कराय छे. अथवा कार्यथी निश्रय कराय छे। अने आत्मानु ते कंइ पण लक्षण नथी के जेना बडे अमे वेनी ससा
For Private and Personal Use Only
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
सूत्रम् ॥ ५१ ॥