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सूत्रम
स्वभावतः प्रवृत्तानां निवृत्तानां स्वभावतः । न हि कत्तेति भूतानां यः पश्यति स पश्यति ॥ आचा० स्वभावधी प्रवर्तेला छे. अने स्वभावधी निवृत थयेला छे तेवा पाणीओनुहुं कइपण करनारो नथी एम जे माने छे तेज देखे |
. ( देखतो छे) केनांजितानि नयनानि मृगाइनानाम् । कोऽलङ्करोति रुचिराङ्गारुहान मयूरान् । कश्चोत्पलेषु दलसंनिचर्य करोति । को वा दधाति विनयं कुलजेषु पुस्सु ॥ ३ ॥ | मृगलीओनी आंखो कोण आंजना गयुं छे, तेमज मयुर वगेरेना पीछामां शोभा कोण करवा गयु छे. अने कमळनी पांखडीओने सारी सुंदर रीते कोण गोठववा जाय छे तथा कुळवान पुरुषना हृदयमां विनय कोण मुकवा जाय छे ? ( कोइ नहि, ते वधुं स्त्र-14 भावधीज याय छे एवं स्वभाववादी माने छे.) । | हवे बीजा कहे छे के आ बधुं जीव विगेरे जे कंइ छे ते इश्वरधीज उत्पन्न थयुं छे. अने तेथीज स्वरुपमा रहे छे. प्रश्न आ KI इश्वर कोण छे ? उत्तर-अणिमादि ऐश्वर्य योगथी से इश्वर के. का छे के:--
अज्ञो जन्तुरनीशः स्यादास्मनः सुखदुःखयोः । ईश्वरप्रेरितो गच्छेत् श्वभ्रं वा स्वर्गमेव वा ॥१॥
अझजन्तु आत्माना सुख दुःखना कारणमा असमर्थ छे पण इश्वरनो मेरायलो स्वर्ग अगर नर्कमा जाय छे. तथा बीजाओ कहे छे। के जीवादि पदार्थ कालादिथी स्वरुपने पामता नथी त्यारे केवी रीते छे ? उत्तर आत्माथीन छे. प्रश्न ए आत्मा कोण छ ? उत्तर
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