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सूत्रम्
॥१९॥
हमेशा होवापणाथी सस्व छ, तो आपणे मनमा धारण करीने जेम प्रत्येक जीवन सुखछे तेम प्रत्येकनी अशाता, महाभय, दुःख! आचा विगेरे हुं कई छु, सेमा जे दुःख पमाडे, ते दुःख भुं वधारे छे? 'असातम्' कष्टथी वेदाय एवा काशना परिणाम, तथा 'अपरि
निर्वाण' घणुं मुख, ते परि निर्वाण ते, न थाय, ते अपरिनिर्वाण छे, एटले चारे बाजुथी शरीर मन विगेरेने पीडा करना तथा IHI'महाभय' महान [पोर्ट्स एवं जे भय ते 'महाभय' जेनाथी बीजो बधारे भय होय नहिं ते महाभय कडेवाय ते थाय ते बतावे छे
वर्धा पाणीयो शरीरथी धनारा तथा मनथी थता दुःखोथी उद्वेग पामे छे, [इसि शब्द एकवार अर्थमां छे] १ प्रमाणे पहेला का, तेर्नु तत्व बराबर मात कर्यै छे, एवो हुँ कहुं छ. जे कहेचान छे ते कहे छे.
'वसंतीत्यादि' ए प्रकारे असातादि विशेषण युक्त दुःखथी पराभव पामेला माणो त्रास पामे छे [उद्वेग पामे छे] तेन प्राण धाकरनारा ते पाणीओ छे. क्याथी त्रास पामे छे ? ते बतावे के 'मगत'जे दिशा खुणा विगेरेथी उद्वेग पामे छे तथा उगमणी विगेरे
|दिशामाथी रहेला त्रास पामे छे [ उद्वेग पामे छे.] आ दिशा अने अनुदिशा बधी प्रज्ञापन विधियो साघेली दिशाओ जाणवी; कामारण के जीवनुं ते व्यवस्थान छे [तथा काकु वचनधी आम अर्थ प्रतिपादन थाय छे] एत्री कोइ दिशा के खुगो नदी के जेमा त्रस& काय न होय, अथवा ज्या रहिने त्रास न पामता होय, जेम कोशेटानो कीडो वधी दिशाओ तथा सुणाभोथी डरीने पोतार्नु रक्षण |
करवा माटे सारथी शरीरने बीटे छे तो पण मरे छे, भाव दिक पण तेवी कोइ नथी के जेमा रहेला त्रसकायो न डरे, शरीरथी अने मनथी उत्पन्न धनारा दुःखोथी वधी जगोपर नरक विगेरेमां पण पाणीओ हणाय छे तेटला माटे हमेशां तेओना मनमा त्रास रहे छ एम जाणवू. एम दिशाओ चया खुणा विगेरे बधी जगोपर त्रास पामे छे, तेथी एम मानी छीए के दिशा क्या खुणा विगेरेमा |
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