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जे वादर पृथिवीकायना भेदो वताव्या ते जेटला पर्याप्ताना छे तेटलाज अपर्याप्तानां छे. आ सरखापणुं भेदने आश्रयीने 12 आचा०४मान, जीवोन सरखापणुं न मानकारण के एक पर्याप्ताने आश्रयी असंख्यात अपर्याप्ता होय छे. सूक्ष्म पण पर्याप्ता अने 31 सुत्रम्
अपर्याप्ता एम बे भेदे जाणवा, पण अपर्याप्तानी निश्राये पर्याप्ता उत्पन्न थाय छे. जेमां एक अपर्याप्तो त्यां तेने आश्रयी असं| ख्यात पर्याप्ता निधे होय छे. हवे पर्याप्तिभो बतावे छे.
आहारसरीरिदियऊसासवओमणोऽहि निव्वत्तो होति जतो दलियाओ, करणं पइसाउ पज्जत्ती॥१॥ आहार, शरीर, इन्द्रियो, श्वासोश्वास, वचन, मन, एओनी अभिनिति (संपूर्ण रीते माप्ति) पाय छे. जे समूहथी करवं तेनी ते पर्याप्ति कहेवाय, एटले एक गतिमांयी जनारो बीजी गतिमां उत्पन्न थाय त्यां प्रथम पुद्गलने ग्रहण करीने निर्वाह करे छे. ते करण विशेष बडे एटले आहारने लीधे जुई खल रस विगेरे भाव वडे परिणाम पपाडे, तेवु करण विशेष एटले आहार तेने पर्याप्ति कहे
छे ए प्रमाणे चीजी पर्याप्तिो पण जाणवी (आत्मा कर्मने आश्रयी नवी गतिमा उत्पन्न यतां जे शक्ति वडे आहारनां पुद्गलो लइश के ते 18 आहार पर्याप्ति जाणवी. तेज प्रमाणे आहार लीधाथी शरोररूपे बनावे तेज प्रमाणे बधी पर्याप्तिओ जाणवी.) तेमां
एकेन्द्रिय जीवोने आहार, शरीर इन्द्रिय, अने उच्छवास नामनी चार पर्याप्तिो छे. आ चार पर्याप्तिओने अंतर्मुहूर्तमा (अडताळीश मीनीटनी अंदर) जीव ग्रहण करे छे. अनाप्त पर्याप्ति एटले पर्याप्त पूरी कर्या विनानो जे जीव होय ते अपर्याप्त कहेलाय, अने जे पर्याप्त पूरी करे तें पर्याप्त कहेवाय. पृथिवीकायनो विग्रह आ प्रमाणे करतो. पृथिवी तेजकाय जेनी छे ते पृथिवो काय जाणवाडी
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