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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra आचा० ॥११७॥ www.kobatirth.org शंका- रुपपणुं, आकारपणुं, विगेरे धर्मो परमाणुओमां पण. छे. तेथी तमारी हेतु अनेकांत दोषवाळो छे. उत्तर- एम नथी कारण के अहिं छे; छेद्यत्व विगेरे हेतु पण साथे लीवेला छे अने ते बंधू इन्द्रियना व्यवहारने अनुपाती साथै रहेनारा छे. ते प्रमाणे परमाणु नथी. आ प्रकरणथी अतीन्द्रिय परमाणुनां व्यवच्छेद कर्यो. अथवा विपक्ष नथी कारण के सर्व पुद्गल द्रव्योनुं द्रव्यशरीरनो स्वीकार कर्यो छे अने जीव सहित अने नजीव सहित आटलं विशेष छे. कहां छे के:--- तणवोऽभातिविगार मुत्त जाइत ओऽणिलंता उ सत्यासत्यहयाओ निज्जीवसजीव रूवाओं ॥ १ ॥ अणु अ विगेरे विकारवाळां मूर्त जातिपणाथी पृथिवीथी वायु सुधी एटले. पृथिवी, पाणी, अग्नि अने वायु ए चारनां शरीर शस्त्रथी हणायला ते निर्जीव छे. अने शखथी न हणायला ते सजीव छे ए प्रमाणे शरीरपर्णु सिद्ध थतां प्रमाण थाय छे (१) हीम कोइ जगोपर पाणी पणे होवाथी बीजा पाणीनी माफक सचेतन छे. (२) अने पाणी सचेतन छे कारण के कोइ जगोपर भूमि खोदतां देडकांनी माफक उछळी आवे छे. (३) अथवा staticी पडतं पाणी सवेतन छे. कारण के ते आकाशमां स्वाभाविक रीते उत्पन्न थत माछलानी माफक उछळी पडे छे, उपर कहेला बधा लक्षणो अपकायने मळता भवतां होवाथी अपकाय सचेतन छे. For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥११७॥
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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