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आचा०केटला
॥१५॥
ཙཱ་རི་ ༥ བར་
र अवश्य अग्निनो समारंभ करे छे, अने सेना समारभमां पृथिवी विगेरेमा आश्रय लइ रहेला जीवना आचा हात पाय छे, ते पतावेछेड
केटलाकनुं अग्निवहे संघात (शरीरतुं संकोचवू ) मोरना पीछा माफक बने छे (मूळ भूत्रमा मुत्रो छंदरुप होवाथी मागधीनी है सूत्रम रीति प्रमाणे बीजीविभक्तिनो अर्थ त्रीजीमा लेबो, एटले अग्निने, तेने बदले अग्निए, अथवा अग्निवडे एम अर्थ करचो, तथा 'च' शब्दथी विशेष अर्थ छे. खलु शब्द निश्चय वाचक छे.) एटले बीमानो आ प्रताप नधी पण अग्निनोज छे, अधना वीजी रीते लेता अमिनी बोजी विभक्ति सातमीमां लइए तो स्पष्ट शब्दनो अर्थ पतित एटले पडेलां, एवो करवो, एटले अग्निर्मा पडेला केटलांक पतंगीआ विगेरे जीवो एकपणे अधिक शरीर संकोचनपणाने पामे छे, अने जेओ अग्निमां पड्या ते बघा जीवो तापथी मृछित थइ जाय छे.
मूत्रकार महाराजे अन्य विभक्ति शा माटे लीधी के आरणे यीनीनो अर्थ त्रीजी विभक्तिमा लेबो पड्यो?
उसर-मगध देशमा ते प्रमाणे चाले छे. अथवा एक भाषांमांथी बीजी भाषामा व्याख्या करना विकल्प थाय छे. ते वतावचा आ कयु, अने अध्याहार विगेरे पण व्याख्यान अंग छे, ए आ सूत्रबडे शिष्यने जणाव्युं छे
प्रश्न-अहिं ते अध्याहार विगेरे कया छ ? उत्तर-अध्याहार, विपरिणाम व्यवहिन कल्पना, गुणा कल्पना लक्षणा (असंचित वाक्पने संभावित पणामां लावबुं ते) अने वाक्य भेद छे. तेवी रीते अहिं बीजीनो अर्थ सप्तमीमा परिणाम पाम्यो छे, जे अग्निमां पडे छे. तेओ कृमि, कीडी, भमरा, नोळीया
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