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आचा०
॥ ३० ॥
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परिज्ञा जे कंद द्रव्यने जाणे तेमां सचित्त आदिनु ज्ञान थाय तेथी ते परिच्छेय द्रव्यना मधानपणाथी द्रव्य परिज्ञा छे. तेज प्रमाणे प्रत्याख्यान परिज्ञा पण जाणवी. तेमां व्यतिरिक्त द्रव्य प्रत्याख्यान परिज्ञामां देह उपकरण विगेरेनुं ज्ञान धनुं अने उपकरण ते रजोहरण विगेरे लेवां. कारण के ते साधकतम पणे छे. अने भाव परिज्ञामां पण वे प्रकार छे. इ परिक्षा अने प्रत्याख्यान परिक्षा छे. तेमां आगमधी ज्ञाता अने उपयोग राखवावाळो जाणवो अने नो आगममां आज्ञान क्रियारुप अध्ययनज छे, नो शब्दनो अर्थ क्रिया अने ज्ञान ए मिश्रपशुं बोलनार अर्थ छे. तेज प्रमाणे मत्याख्यान भाव परिज्ञाने पण जाणवी. आगमथी पूर्व प्रमाणे छे. पण नो आगमथी प्राणातिपातनी निवृतिरूप जाणवी. ते मन वचन अने कायाए त्रण योग अने कृत. कारित अने अनुमति (कर कराव, अनुमोद) एम नव प्रकारे हिंसाथी अटका रूप जाणवु नाम निष्पन्न निक्षेपो पुरो थयो हवे आचार विगेरे आपनारना अने ते सहेलथी समजाय माटे द्रष्टांत बतावी विधि कहे छे.
जेम को राजाए पोतानुं नवु नगर स्थापवानी इच्छाथी जमीनना भागो करीने सरखे भागे प्रधानाने आप्या. तेज प्रमाणे कचरो दूर करवा शल्य ( फांटा विगेरे ) दूर करवा तथा जमीन सरखी करवा पाकी इंटोना चोतरावाळो महल बनाववा तथा रत्न विगेरे ग्रहण करवा उपदेश आप्यो. तेथी ते मधानोए राजाना उपदेश प्रमाणे पोतानुं कार्य करीने राजानी महेरबानीथी इच्छित भोगोने भोगव्या. आ दृष्टांत छे. तेना उपरथी एम समजत्रु के राजा समान आचार्ये प्रधान समान शिष्य गणोने भूखंडरूप संयम | तेने बरोबर समजावीने मिध्यात्वादि कचरो दूर करी सर्व उपाधिथी शुद्धने दीक्षा आरोपीने सामायिक संगममां द्रढ करीने पाकी
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सूत्रम ॥ ३० ॥