________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
आचा०
सूत्रम
॥१७३॥
॥१७३॥
| कार्य प्रमाणे का हे, जेमके नल' (गंदु) पाणी पगनो रोम के तेम गायन विगेरेनो रस ते संसार कारण होवाथी ते संसार
छे; सूत्रगां एक वचन होवाथी एम सूचव्यु के जे पुरुष गायन वाजींच विगेरेनो रसीओ याय, ते आवर्तमां पडे छे, अने जे आवर्त | है। (ससार) मां पडे छे, ते शब्दादिनो रसीयो थाय छे, अहीं उद्यत चंचु (वाचाल) पृछे छे के प्रयोग आम करवो, के जे गुणां वर्ते
ते आ वर्तमां वर्ते पण जे आवर्तमां वत ते गुणमां वर्तेज एवों काइ नियम नथी, कारण के साधुओ आवर्तमां हे, पण गुणोमां नथी| तेनु केम? आचार्य कहे छे तमारूं कहे, सत्य छे. आवर्तमा यति (साधुओं) रहे छे पण तेओ गुणो(गायन) मा प्रवर्तता नथी, पण राग द्वेष पूर्वक गुणोमा जे वर्ते, ते अहीं लेवा; अने साधुओने तेनो अभाव होवाथी न होय अने तेमने संसाररूप आवर्त दुःख न होय, पण सामान्यथी संसारमा पडवं, अने सामान्य शब्दो विगेरे मुणो माप्त यवा संभवे छे. तेथी उपलब्धिनो निषेध | नथी पण अहीं रागद्वेषना परिणामबाळो जे गुण (रस) होय तेनो साधुने निषेध छे, तेमज कई छे.
"कण्णसोक्खेहि सद्देहिं पेम्मं नाभिनिवेसए" (विगेरे सूत्र छे.) कानने सुख आफ्नार शब्दोमा (साधु) प्रेम न करे दिगेरे तथा.
न शक्य रूपमद्रष्टु, चक्षुगोंचरमागतम । रागद्वेषा तु यो तत्र. तौ बुधाः परिवर्जयेत् ॥१॥
चक्षु आगळ आवेलुं रुप न जोवाय ए शक्य नथी पण पंडित पुरुषे त्यां जे राग द्वेष धाय ते त्यजवा जोइए गुणोनुं वधारे है पणुं वनस्पतिथी केवीरीते छे ते बतावे छे. वेणु, वीणा, पटह, मुकुंद, विगेरे जे जे बानींत्रो छे ते बधानी बनस्पतिथी उत्पत्ति
For Private and Personal use only