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जाणषु कारण के अहि तो अनुयोग मात्रनो विषय छे.
आ अनुयोग आचार्यने आधीन होवाथी, कोणे कर्यो, ते द्वारा बताये छे, तेन उपक्रम विगेरे चार द्वार के ते घणा उपयोगी | होवाथी बनावे छे. कोणे कर्यु अने ते केवा जोइए से बतावे छे. अहीं आचार्यना छत्रीश गुणो बतावे छे.
॥ ६ ॥
| देश कुल जाइ रुवी संघयणी धिइजुओ अणासंसी, अविकत्थणो अमाई थिर परि वाडी गहिय वको। १ जिय परिसो जियनिदो मज्झत्थोदेसकाल भावन्नू, आसन्न लऊ पइभो णाणाविह देस भासण्णू |२| पंच विह आयारे जुत्तो सुत्तत्थ तदु भय विहिन्नू, आहरण हेउ कारण णय णिउणो गाहणा कुसलो |३| ससमय परसमय विऊ गम्भीरो दित्तिमं सिवोसोमो गुणसय कलिओजुत्तो पत्रयण सारं परिकहेउ | ४ | आर्य देशम उत्पन्न थयेल से बधाने सहेलाइयी बोध आपी शके छे पितानुं कुळ ते इक्ष्वाकु विगेरे तथा ज्ञातकुळ, ते श्रेष्ट दोवायी माथे आवेला बोजाने उपाडतां धाकता नथी ' मातानी जाति ' ते उत्तम होय तो विनयादिक गुणवाळो थाय छे, अने ज्यां सुन्दर आकृति त्यां गुणो रहे छे तेथी रुप लीधुं, संहनन अने धीरज आ बेथी युक्त होय तो उपदेश विगेरेमां खेद न पामे, अ| नाशंसी होवाथी सांभळनारा पासे वखादिक न मागे अविकत्थन होवाथी हितमित बोलनारो छे अमाथी ते कपटी न होवाथी सर्वत्र विश्वास करवा योग्य छे, स्थिर परिपाटी ते भणेका सूत्र तथा अर्थने न भूले, ग्राह्म वाक्य तेनी आज्ञा वधा माने, जीत पर्षद
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सूत्रम् ॥ ६ ॥