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आचा० ॥ ५३ ॥
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विचार
माणस आथर्यकारक सुख दुःखनुं धनुं ते उपस्थित थयेलुंज छे. जेभ कागडाना बेसनाथ area' पड थाय ते जेम कागडाए पाडयु नथी तेम जगत्मां जे कांइ थाय छे, ते बुद्धिपूर्वक नथी. पण तेमां लोकोनु खोड अभिमान छे (के मे आ कयूँ) १ असे वनना पिशाचो छीए ते खरु छे. अमे हाथथी भेरीने अडकता पण नथी तो पण यदृच्छाए लोको एकटा थाय छे अने कहे छेके पिशाचो भेरीने बगाडे छे. १ (पंच वन्त्रमां आने मळतं एक दृष्टांत छे. फोड़ लश्करमांथी छुटो पडेलो भेरीबाको सिंहना मारथी मरी गयो अने तेनी भेरी वांदराना हाथमां आधी ते कोइवखत बगाडे अने ते पहाडमां जाय ते लोकोने संभळाय तेथी आजुबाजुना लोको गमराया के पहाडनी अंदर पिशाचो भेरी बगाडी डरावे छे. तेथी लोको डरीने नासवा लाग्या. |तेमां को हिंमतवाने फल लइ बांदराभोने एकठां करी तेमनी पासेथी भेरी लह लीधी अने लोकोनो बहेम मदाडयो ? जैम कागहाना बेसवाथी ताडनुं झाड पडे तो पण तेया कागडानी बुद्धि नथी के मारा उपर ताड पडशे, तेम साइनो अभिप्राय नथी के कागडा उपर पहुं. छत ते बेउ थाय छे. ए प्रमाणे, बाकी पण विना विचारतु, अजा कृपाणी, आतुर भेषज, अंध कंटक विगेरे द्रष्टांतो पण जाणी छेवां ए प्रमाणे बधा माणीओनां, जन्म, जरा, मरण विगेरे लोकमां जे कांइ थाय ते बधुं काकतालीय न्याय माफक जाणवु, एवीजरीते, नियति स्वभाव, इश्वर, आत्मा विगेरेधी पण आ आत्माने, असिद्ध करतो, ( एटले आत्मानी | दरेक रीते असिद्धि बतावत्री) क्रियावादीना ८४ भेद थया, हवे अज्ञानीभोना ६७ भेद बतावे छे, ते आ प्रमाणे
पूर्वे जीवादि नव पदार्थ कही गया, तेनी साये उत्पत्ति दशमी लेवी ते दशेने सत् असत् सदसत्, अव्यक्तव्य, सद् वक्तव्य
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सूत्रम्
॥ ५३ ॥