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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सूत्रम् ॥५४॥ असद्वक्तव्य, अने सदसद्वक्तव्य, आ सात भेदवडे जाणवाने शक्तिमान नथी तेमज जाणवाथी सुप्रयोजन के ? तेनी भावना निआचा०चे मुजब, जीव विद्यमान छ एम कोण जाछे? अथवा जाणवाथी झुं लाभ ? अथवा जीव अविद्यमान छे अथवा जाणवाथी | त लाभ? ए प्रमाणे अनीवादिकमां पण सात विकल्प, ते प्रमाणे सात सात गणसां ६३ भाग थया तेमां चार बीना उमेरवा ते आम ॥५४॥ छे. विद्यमान (छती) भावनी उत्पत्ति कोण जाणे छे? अथवा जाणवाथी प्रयोजन ? बाकीना प्रण विकल्प उत्पसिना, उत्तरकाल पदार्थना अवयवनी अपेक्षाए छे. तेनो संभव थतो नथी तेथी ते पण नथी कया एटले चार भांगा संभवे. ते उमेस्ता कूल ६७) थया. आमा जीच सत् छे ते कोण जाणे छे. तेनो अर्थ आहे के कोइने विशिष्ट ज्ञान नथी के जे इन्द्रिोथी अतीत जीवादि पदार्थोने जाणी श के अने तेमना जाणवाथी कंइ पण फळ नयी | जेमके जीव नित्य, सर्वगत मूर्त ज्ञानादिगुण उपेत अथवा उपरना गुणोथो व्यतिरिक्त छे. अने तेथी कया पुरुषार्थनी सिद्धि थाय? तेथी अज्ञानन श्रेय छे. वळी तुल्य अपराधमां, अज्ञानताथी करवामां लोकोमा स्वल्प दोष छे. अने, तेज पमाणे लोकोत्तरमा पण आकुट्टिक (मनथी पाप करनार) अनाभोग (अजाण्यु) सहशाकार (जलदी) विगेरे कार्य थाय तेमां शुलक (नानो) भिक्षु तथा स्थविर, उपाध्याय, आचार्य ने अनुक्रमे वधारे वधारे पायश्चित्त छे, तेवू वीना विकल्पमा पण योजवू. विनयवादीना १२ भेद आ प्रमाणे छे-देवता, राजा, पति, जाति, स्थविर, अधम, माता पिता, ए आठमां मन, बचन, काया, अने पदान, ए चार प्रकारे विनय करवो ते आ प्रमाणे, आ देवताओनो मन, वचन, काया, अने देशकाळनी उत्पत्ति 1 प्रमाणे दान देवा पढे विनय करवो. आ विनयधीज स्वर्ग, अपवगेना मार्गने तेओ स्वीकारे छे. अने नीति (नीचे नमव ने 154: For Private and Personal Use Only
SR No.020008
Book TitleAcharanga Stram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShilankacharya
PublisherShravak Hiralal Hansraj
Publication Year1932
Total Pages214
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_acharang
File Size5 MB
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