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सूत्रम्
॥४८॥
शालत छे. पण पणिक नथी कारण के से वर्तमाननी माफक भूत अते भविष्यमा पण छे. कानयी पटले कान मा दुनियानी | आचा018 स्थिति अने उत्पत्ति तथा प्रलयन कारण हे. कझुं छे के:
कालः पचति भूतानि कालः संहरते प्रजाः । कालः सुप्तेषु जागर्ति कालो हि दुरतिक्रमः ॥१॥ ॥४८॥
काळज़ भूतोने परिपक्व करे छे, अने तेज सर्व प्रजानो नाश करे छे. बघा सुतेला होय तोपण काळ तो जागेज छे. माटे काळ दुःखेथी पण उलंघन थइ शकातो नथी. अने ते अतिन्द्रिय छे. तया थोडा काळे तथा पणा काळे यती क्रियाथी जणाय छे. हीम, गरमी, वर्षा, विगेरेनी व्यवस्थानो हेतु छे. तथा क्षण, लव, मुहुर्त, प्रहर, अहोरात्र, मास, रुतु, अयन, संवत्सर, युग, कल्प, पल्यो-15 पम, सागरोपम, उत्सर्पिणी, अवसर्पिणी, पुदगल परावर्त, अतीत, अनागत, वर्तमान, सर्व, अद्धा विगेरेनो व्यवहाररुप छे. तथा बीना विकल्पमां काळीज आत्मानुं अस्तित्व स्वीकार्य छे. पण पहेला अने वीजा विकल्पमा भेद एटलो छे के आ अनित्य छ । अने पूर्वनो नित्य इतो. त्रिजा विकल्पमा पर आत्माथीन स्व आत्मानी सिद्धि स्त्रीकारी छे.
पण केवी रीते परथी आत्मानु अस्तित्व स्वीकारी शकाय ? उत्तर आतो प्रसिद्धन छे के सर्वे पदार्थ पर पदार्थना स्वरुपनी अपेक्षा ४ | ए, पोताना रुपनो परिच्छेदक छे. जेमके दीर्घनी अपेक्षाए इस्वपणानु ज्ञान छे अने हस्सनी अपेक्षाए दीर्घपणानुज्ञान छे. एमज ।
आत्मा शिवायना स्तंभ, कुंभ, विगेरे देखीने तेनायी जुदो जे पदार्थ तेमा आत्मपणानी बुद्धि प्रवर्ते छे. तेथी आत्मानु स्वरुप ते 2 परथीज निश्चय पाय छे. पण पोतानी मेळे नहि. एम बीजो विकल्प सिद्ध थयो, चोथा विकल्पमा पहेलानी माफकज छे ए चार 8
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