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सूत्रम् १६६॥
इक्कस्स दुण्ह तिण्ह व संखिजाण व न पासिउं सका। दोसंति सरीराई, निओयजीवणाणताणं ॥१५॥ आचा०
P एक विगेरेथी लइने छेवटे असंख्यात संख्याना अनंत तरु जीवोना जुदा शरीरो देखाता नथी. कारण के तेनो अभाव छे. पक
विगेरे जीवे ग्रहण करेलुं अनंत जीवो सुधीनुं शरीर जुहुँ नथी कारण के अनंता जीवोनुं पिंडरुपे एकज शरीर छे.. ॥१६६॥
प्रश्न-स्यारे ते केवी रीते जीनोने शरीवाला जाणवा ? ते बताये छे.
उत्तर-वादरनिगोद जे अनंत जीवो छे तेमनां शरीरो देखाय छे, पण सूक्ष्म निगोदना शरीरो देखाता नथी, कारण के अनन्त जीवोना समूहपणे शरीरी छतां ते अति सूक्ष्म छे, अने निगोद ले तेनियमथी अनन्त जीवोनो समूह होय छे. कयु छ के-. गोला य असंखेजा, हुंति णिोआ असंखया गोले। एकेको य निओए, अणंतजीवो मुणेयव्यो ॥१॥
असंख्याता निगोदना गोळा छे, एकेक गोळामा असंख्यात निगोद छे. अने एकेक निगोदमां अनंता जीयो छे ए प्रमाणे - नस्पतिना क्षादि प्रत्येक विगेरे भेदोथी तथा वर्ण, गंध, रस, स्पर्शना भेदथी हजारोनी संख्यामां भेद अने योनि विगेरे भेदो लाखो18नी संख्यामा छे अने बनस्पतिनी संवृता योनि छे. ते सचित्त अचित्त अने मिश्र एम त्रण भेदो छे तथा शीत, उष्ण, मिश्र एका ब. दण भेद छे एप्रमाणे गणता मत्येक तरुभोनी योनीना दश लाख भेद छे, अने साधारण वनस्पतिना चौद लाख भेद छे. अने बन्नेनी
कुल कोटी २५ करोड लाख जाणवी; विधान द्वार का हवे परीमाण द्वार कहे छे; तेमां प्रथम सूक्ष्म अनंत जीवोनुं परिमाण बतावे छे. पत्थेण व कुडवेण व जह कोई मिणिज्ज सवधन्नाई। एवं मविजमाणा, हवंति लोया अणंता उ ॥१४॥
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