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पृथ्वी अचेतन होवार्थी तेम यचु अयुक्त छे अथवा जाति धर्म विगेरे पूर्व सूत्रोमां कहेला ते प्रधाथी एकन हेतु छे. वीजा हेतुनी जआचार नथी अने केश विगेरेमा समुदाय हेतु नथी तेथी अमारु लक्षण (हेतु) निर्दोष छे तथा जेम आ मनुष्य शरीर निरंतर वाळ कु-18 सूत्रम्
मार विगेरे अवस्थाथी वधे छे, ते प्रमाणे आ वनस्पतिनां शरीर ते अंकुरा, किसलय, शाखा, प्रशाखा विगेरेथी बधे छे तथा जे ॥१८॥ मनुष्य शरीर चित्तवाळु छे तेभ वनस्पतिनुं शरीर पण चित्तवालु छे
P१८०॥ प्रश्न-केवी रीते? ते बतावे के. जेनावडे चेते ते चित (ज्ञान) तेनाथी मनुष्यनुं शरीर ज्ञानयुक्त छे. तेज प्रमाणे बनस्पवितुं पण छे. कारण के धात्री, मपुन्नाट (लजामणी) विगेरेने उघवा तथा जागवानो स्वभाव छे तथा तेनी नीवे दाटेला धन समु| हने पोताना उगवावडे छुपावे छे, तथा वर्षाना मेघना अवाजथी शिशीरना वायुना स्पर्शथी अंकुगर्नु उत्पन्न थ, तथा मद मदन संगधी स्खलायमान गतिवाळी घेरायला चपळ लोचनवाळी स्त्री ज्ञाझरवाला कोमळ पगधी ताडन करे, तो अशोक वृक्षने पल्लव अने
फुलनी उत्पति थाय छे तथा सुगंधवाला दारुनो कोगको छांटबाथी बकुल फुटे छे, तथा स्पृष्ट प्ररोहिक ( लजामणी) ने हाथ ६ विगेरे लगाडयाथी संकोचादि क्रिया प्रगट जणाय छे अने आ झाड संबंधी कहेली वर्तणुक ज्ञान शीवाय न बनी के तेथी वनस्प-18
लिन सचित्तपणुं सिद्ध थयु तथा जेम आ मनुष्य शरीर घा लागतां सूकाय छे तेम ते पण सुकाय छेएटले मनुष्य शरीर हाथ वि
गरेमा दायल सुकाय छे तेम झाइनुं शरीर पण पल्लव फल, फुल, विगेरेथी दायलं मुकातुं देखाय छे. आ अचेतननो धर्म नथी ४ शाक भात विगेरेनो आहार करनार मनुष्य शरीर छे, तेम वनस्पतिनुं शरीर पण जमीन पाणी विगेरेनो आहार करनार छ; अने
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